Thursday, March 12, 2015

ड़र लगता है ज़माने से



कलम से____

चलता रहता हूँ
चूँकि चलना आदत है
साये में रहता हूँ
फिर भी चश्मा धूप का लगाए रहता हूँ
बरामदे में रहता हूँ
भीग न जाऊँ कहीं
इस ड़र से छतरी लगाए रहता हूँ
ड़र लगता है ज़माने से
इसलिए मुहँ छिपाए रहता हूँ.....

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/

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