Monday, August 24, 2015

रेप में भला इज्जत क्या चार से लुटती है?





शाम से सुबह तक
दिन से रात तक
बस एक ही चीज
वही चक चक.........

आपाधापी में
कब सुबह हुई
कब शाम हुई
पता जब चला
अहसासों की मृत्यु हुई......

अखबार के हर पन्ने पर
एक ही बात दिखती है
कभी इस गली में
कभी उस गली में
इज्जत बहन की
कभी यहाँ
कभी वहाँ
बस लुटती है
नालायक हो गया है
मुलायम सा दिल
प्रश्न जो है पूछता
रेप में भला इज्जत
क्या चार से लुटती है?

©सुरेंद्रपालसिंह 2015

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