Saturday, August 29, 2015

सहर होने तक ठहर जाओ तो कुछ चैन पड़े !




कलम से____
इक बार ज़रा और पास आओ तो चैन पड़े
पैमाने को थोड़ा छलकओ तो ज़रा चैन पड़े !
सागर के किनारे बैठके हर मौज पर दिल मचलेगा
आगे बढ़ के तूफान से टकराओ तो कुछ चैन पड़े !
सुकून मिलता है तेरा अफसाना सुन के
तड़पती हुई गज़ल सुनाओ तो कुछ चैन पड़े !
यादों के सहारे कट रही है ए-जिंदगानी अपनी
वक्त रुक जाए कुछ ऐसा करो तो चैन पड़े !
दामन में चाँद सितारे जड़कर रात है आज आई
सहर होने तक ठहर जाओ तो कुछ चैन पड़े !
©सुरेंद्रपालसिंह 2015

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