Sunday, August 23, 2015

आज सुबह की बारिश ने बहुत सूकून दिया।


दो तीन रोज़ से उमस बहुत थी, आज सुबह की बारिश ने बहुत सूकून दिया।

कल शाम को अपने घर की बंद बालकनी में बैठकर बहुत याद आ रहे थे वो पुराने घर जिनमें खुला आंगन और फैले हुये बरामदे हुआ करते थे। कौन कम्बख्त, बंद कमरों में रहना पसंद करता था। ज्यादातर घर के लोग चारपाई बिछा बरामदे में ही सोते थे। एक अदद टेबल फैन लग जाता था जो सबसे करीब चारपाई वाले को तो खूब हवा देता था। बादवाकी हवा के इक्के दुक्के झोंके हीमहसूस कर पाते थे।

मच्छर काटा करते थे। बचने के लिए बच्चे अक्सर मुँह से टाँग चादरें से ढ़क करत सो जाया करते थे। ऐसे में बारिश भी जब होती थी तो पैताने फुहार बड़ी अच्छी लगती थी। नींद उचटती सी आती रहती थी पर मन को गुदगुदाती रहती थी।

इन्हीं बरामदों में एक तरफ झूला पड़ जाता था। घर के बच्चों के लिए बरसात में घमाचौकड़ी मचाने की जगह खूब रहती थी। चौके के पास ही तख्त पर सब्जी भाजी काटने से मुहल्ले भर की बातें बतियाते घर की औरतों कभी नहीं थकतीं थीं। कहने का मतलब आंगन में लगी तुलसी और बरामदे से जितना लगाव हुआ करता था उसका जिक्र करना मुश्किल है, बस यूँ समझ लीजिए जिदंगी बस इन्हीं के आसपास मौज मस्ती में कट जाती थी।

आज फ्लैट में रहते हुए अब यह सब बातें जैसे गुज़रे ज़माने जैसी लगतीं हैं बस nostalgic बना छोड़ जातीं हैं।

वक्त बदल रहा है पर कभी कभी घुटन लगने लगती है, मन उचटने लगता है पर यह सोच शांत हो जाता है अब जिदंगी यहीं बसर करनी है। ख्वाब में जिदंगी बहुत हसीन लगती है........

No comments:

Post a Comment