जो लोग सहारनपुर, बिजनौर तथा हरिद्वार जनपद के इतिहास की जानकारी रखते हैं, उन्हें सुल्ताना डाकू के किस्से रह रह कर याद आते रहते हैं।
नौटंकी के हारमोनियम की मस्तानी धुन, नगाडे की थाप और गर्मी की रातों में नींद उड़ाती रहती थी और बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करती रहती थी। शनैः शनैः यह सभी लोक कलायें इतिहास बनती जा रहीं हैं।
नौटंकी के बाबत:
नौटंकी में कविता और साधारण बोलचाल को मिलाने की प्रथा शुरू से रही है। पात्र आपस में बातें करते हैं लेकिन गहरी भावनाओं और संदेशों को अक्सर तुकबंदी के ज़रिये प्रकट किया जाता है। गाने में सारंगी, तबले, हारमोनियम और नगाड़े जैसे वाद्य इस्तेमाल होते हैं।मिसाल के लिए 'सुल्ताना डाकू' के एक रूप में सुल्ताना अपनी प्रेमिका को समझाता है कि वह ग़रीबों की सहायता करने के लिए पैदा हुआ है और इसीलिए अमीरों को लूटता है। उसकी प्रेमिका (नील कँवल) कहती है कि उसे सुल्ताना की वीरता पर नाज़ है (इसमें रूहेलखंड की कुछ खड़ी-बोली है):
सुल्ताना:
प्यारी कंगाल किस को समझती है तू?
कोई मुझ सा दबंगर न रश्क-ए-कमर
जब हो ख़्वाहिश मुझे लाऊँ दम-भर में तब
क्योंकि मेरी दौलत जमा है अमीरों के घर
नील कँवल:
आफ़रीन, आफ़रीन, उस ख़ुदा के लिए
जिसने ऐसे बहादुर बनाए हो तुम
मेरी क़िस्मत को भी आफ़रीन, आफ़रीन
जिस से सरताज मेरे कहाए हो तुम
सुल्ताना:
पा के ज़र जो न ख़ैरात कौड़ी करे
उन का दुश्मन ख़ुदा ने बनाया हूँ मैं
जिन ग़रीबों का ग़मख़्वार कोई नहीं
उन का ग़मख़्वार पैदा हो आया हूँ मैं
सुल्ताना:
प्यारी कंगाल किस को समझती है तू?
कोई मुझ-सा दबंग नहीं
जब मेरी मर्ज़ी हो एक सांस में ला सकता हूँ
क्योंकि अमीरों की दौलत पर मेरा ही हक़ है
नील कँवल:
वाह, वाह, उस ख़ुदा के लिए
जिसने ऐसे बहादुर बनाए हो तुम
मेरी क़िस्मत को भी वाह, वाह
जिस से सरताज मेरे कहाए हो तुम
सुल्ताना:
पा के सोना जो कौड़ी भी न दान करे
ख़ुदा ने मुझे उनका दुश्मन बनाया है
जिन ग़रीबों का दर्द बांटने वाला कोई नहीं
उन का दर्द हटाने वाला बनकर मैं पैदा हुआ हूँ
वाह री हमारी लोक संस्कृति.....लख लख सलाम।