Monday, April 6, 2015

ज़ज़्बात कम जिस्म मचलने लगे हैं।

                                                ज़ज़्बात कम जिस्म मचलने लगे हैं।


कलम से____

प्यार में यहाँ कुछ भी पुराना नहीं है
यहाँ अब सब कुछ नया लगने लगा है ।

प्यार में हालात यूँ भी होने लगे हैं
ज़ज़्बात कम जिस्म मचलने लगे हैं।

इश्क मोहब्बत के ख़्यालात पुराने हो चले हैं
किताबों के पन्नों में दम तोड़ते दिख रहे हैं।

जाने अब यह कौन सा दौर है आया
छोटी-छोटी बातों पे रूठना आदत में उनके शुमार है।

इन हाथों की लकीरों में रखा क्या है
हर कोई यहाँ अपने सवालों में उलझा पड़ा है।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/

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