Wednesday, April 1, 2015

फिर कोई देवता आयेगा




कलम से____

अशोक चक्रवर्ती
देखते देखते
विचार मन में
अचानक उठा
कैसी कैसी व्यवस्था
राज्य सूचना
जानकारी के
लिए करता था
गुप्तचरों की जमात
आमात्य और आचार्य
राजा स्वयं भी
भेष बदल कर
निकाला करता था
प्रजा के हाल जानने हेतु
तब जाकर कहीं
एक सुदृढ
न्याय व्यवस्था
बन पाती थी।

यही सुना था
राम राज्य में
ऐसा ही
होता था।

यही अकबरी
दरबार में भी।

अंग्रेजी साम्राज्य में
भी शुरूआती दौर में
कुछ ऐसा ही था
शनैः शनैः
नया रूप
पनपा न्यायालय
बन गये
सूचना के क्षेत्र में
क्रांति आ गई
राजा के स्थान पर
हुक्मरान आ गये,
पेड सरवैन्ट,
आई टी ने तो
कमाल कर दिया
उस पर तुर्रा
जन प्रतिनिधि
और जागरूक
जनता
सभी मिल लड़ने लगे
अपने अपने स्वार्थ
की लड़ाइयां
बेचारी जनता
हार गई, टूट गई
बोझ तले दब गई
आवाज समाजवाद की
कभी साम्यवाद से
पूंजीवाद से
कभी टोपी सुफैद
कभी हरी
कभी लाल हो गई
कभी वो 'आप' की हो गई
और अक्सर सरेआम
बाजार बिकती रही
नाज़ करते थे जिस पर
वही मुन्नी बदनाम हो गई।

हालात दिन ब दिन
बद से बदतर हो गये
करे क्या अब कोई
समझ के परे हो गये।

प्रजा दरख्वास्त
लेकर है खड़ी
सूचनाओं की
झड़ी है लगी
कार्यवाही कब होगी
बस इंतजार में
हाथ जोड़े है खड़ी।

दारू की दुकान
या हो वो राशन की
लाइन होती ही
जा रही लंबी
पब्लिक परेशान है
आस में बस खड़ी है।

आप फेसबुक पर
कुछ भी लिख दो
हुक्मरानों तक
पहुँचा दो
फिर भी कुछ
नहीं होगा
जो भाग्य में
बदा है, वही होगा।

फिर कोई देवता
आयेगा
देखो भला शायद तब ही
कुछ हो पायेगा.....

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/

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