Sunday, February 22, 2015

भवँर में फँसी जिदंगी का छटपटाना


कलम से___


अबके गाँव में
नहर किनारे घूमते हुए
फिर से बचपन जी लिया
मन ही मन
पुल के ऊपर से कूदना
दूर कहीं जाकर निकलना
वो पानी को बालों से छिटकना
वो हँसना हँसाना
वो रोना रुलाना
भवँर में फँसी जिदंगी का छटपटाना
लहरों के साथ दूर तक चले जाना
सब कुछ जी लिया
अब चल ए मन
लौट के फिर घर को है चलना।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/
 — with Puneet Chowdhary.

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