Thursday, February 5, 2015

अबके संयम न टूटेंगे न होगा कोई अनुबंध देर से आया जो बसंत।



कलम से____

बसंत पंचमी 24th January को थी।परंतु सर्दी की मार ऐसी पड़ी कि बसंती मौसम का अहसास नहीं हुआ। बस उसी विधा पर है यह एक तुच्छ भेंट:-

अबके संयम न टूटेंगे
न होगा कोई अनुबंध
देर से आया है जो बसंत।

पूछूँगी जरूर कहाँ
रुके रहे सौतन के संग
देर से आया है जो बसंत।

फुनगी पर आया नहीँ भंवर
गुजिंत हो नहीं रहे छंद
देर से आया है जो बसंत।

शहनाई नहीं बजी
नहीं बही जीवनदायनी सुगंध
देर से आया है जो बसंत।

बौर नहीं आया अमराई में
कुहू ने छेड़ी नहीं कोई तरंग
देर से आया है जो बसंत।

सरसों हरी भरी है
महुए की ड़ाली है बेरंग
देर से आया है जो बसंत।

बूढ़े से बरगद के
शिथिल पड़े हैं सब अंग
देर से आया है जो बसंत।

अबके संयम न टूटेंगे
न होगा कोई अनुबंध
देर से आया जो बसंत।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/

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