Friday, February 13, 2015

गाँव के घर के आंगन में अबकी बार फिर से गौरइया दिखी


 कलम से____

गाँव के घर के
आंगन में
अबकी बार
फिर से
गौरइया दिखी
मन मेरा दूर कहीं
निकल गया
बचपन
के दिनों में
खो गया...

मौसी भाग कर
सूप से ढ़क
से गौरइया पकड़ लेती हैं
माँ के पास लाती हैं
मिलकर दोनों
आल्ता से
गौरइया को
गुलाबी रंग देतीं
फिर से आजाद
उसे कर देतीं
फुर्र से गौरइया
आंगन की मुड़ेंर पर
इधर उधर कूदा करती
फिर तो वह
अक्सर ही दिख जाती
कभी यहाँ
कभी वहाँ
घर के किसी कोने में
दाना चुगते हुये
मन को लुभाती रहती ...

काश मैं भी
ऐसा दोबारा कर पाता
गौरइया को आल्ता से रंग पाता
माँ मौसी
जो किया उसे
मैं भी जी पाता
गौरइया भी अब
यदाकदा ही दिखती है
माँ और मौसी की तो
बस याद ही बसती है.....

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/

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