Friday, February 6, 2015

तुमसे कभी अचानक मुलाकात हो जाए, तुम पहचानने की क्या कोशिश भी करोगे,




कलम से____

तुमसे कभी अचानक मुलाकात हो जाए,
तुम पहचानने की क्या कोशिश भी करोगे,
तुम्हारे ज़ेहन में शायद मेरी याद भी न आए,
तुमसे कभी----

गांव के बरगद के पेड़ की तरह हो गया हूँ मैं,
खड़ा हूँ दूसरों की जिन्दगी के लिए,
अक्सर लोग मेरी शीतल छाया का आनंद उठाते हैं,
कभी कुछ परिन्दे मेरी ड़ाल पर बैठ थकान मिटाते हैं,
किसी का आदर्श हूँ मैं,
कुछ लोग त्योहार में जल भी चढ़ा जाते हैं।

मेरा सीना गर्व से फूला नहीं समाता,
हरेक इन्सान पास मेरे जब है आता।

इतना सब होते हुए भी एक गम है मुझे सताता,
तुमसे कभी अचानक मुलाकात हो जाए
तुम पहचानने की क्या कोशिश भी करोगे,
तुम्हारे ज़ेहन में शायद मेरी याद भी न आए,
तुमसे कभी----

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/

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