Tuesday, December 30, 2014

एक पुलिस वाला ही

कलम से____
एक पुलिस वाला ही
दूसरे पुलिस वाले का दर्द समझता है
कहते हुए सिपाही ने
इन्सपेक्टर से कहा
सर आज गज़ब की सर्दी है
दिल्ली जम जाएगी
हमारा क्या होगा
अबे ड्यूटी कर
नहीं होती सरकार
रोज़ आती है जाती है
किसकी बजायें
समझ नहीं आता है
कभी मफलर वाला
तो कभी टेन्ट वाला
किसको पकड़ें
किसको छोडें
अबके न जाने क्या होगा
अबे तुझे क्या करना है
तू हुक्म बजा
लो सरकार तो मैं चला
हुक्म बजा लाता हूँ
है सरदी कांटे की
इसका ही इलाज कर आता हूँ
सीधे ठेके पर गया
लगाए दो तीन फिर चार
चढ़ गई सिर पर हो सबार
करने लगा अंटशंट हरकत
खेंच दिए दो तीन हाथ
मजबूत एक शराबी ने
पिटते देख उसे आ गया
इन्सपेक्टर भी सीन पर
फिर क्या था हुआ फ्री फौर आल
बोतलें चलने लगीं
चप्पल जूते भी चले
जो न होना था वह सब हो गया
पुलिस वालों पर
जनता शासन चल गया
ऐसी है दिल्ली की सरदी..
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
— with Puneet Chowdhary.

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