Wednesday, October 15, 2014



कलम से____

चलते चलते
    दूर काफी निकल गया
सोचा साथ कुछ है मेरे नहीं
 कर्ज किसी का चुकाना है नहीं
मुड़ के देखा
   निशान कुछ साथ चल रहे थे
रेत पर
जैसे कि वो छोड़ेंगे
अकेला मुझे नहीं !!!

//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

http://spsinghamaur.blogspot.in/

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