Wednesday, September 3, 2014

मैं सोचता हूँ अगर हम जड़ होते ।

कलम से____

मैं सोचता हूँ
अगर हम जड़ होते
न हम हिलते
न हम चलते
न हीं हम पर
मौसम असर अपना करते
बस हम अगर जड़ होते।

मौसम दुलारते हैं
प्यार से निखारते हैं
अपने आने जाने का
अहसास दिलाते रहते हैं।

मौसम ही न होते
हम शायद जड़ हो गए होते।

आज मौसम है भारी भारी
आसमां है घिरा घिरा सा
भादों का है महीना
कह यह रहा है
सावन न बरसे
अब बरसेगें
सारी कमी पूरी कर देगें
किसान की आँखों के आँसू न दिखेंगे
सभी सन्तान हैं मेरी
किसी को भी न रोने दूँगा
ख्याल सबका मैं रखूँगा।

एक काम अब तुम करलो
पेड़ पौधों का ध्यान तुम धरलो
यह धरा है तुम्हारी
सभाँलो इसको
बेटे सा पालो तुम इसको

बस बेटे से पालो तुम अब इसको.........

//surendrapalsingh//

http://spsinghamaur.blogspot.in/

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