Thursday, September 11, 2014

मोती दूब पर बिखरे दिखे

कलम से____


मोती दूब पर बिखरे दिखे
मन की चाहत हुई सब आँचल में बटोर लूँ
किसी के पैरों की आहट सुनी
मैं थमा सा रह गया।

मौसम में ठहराव था जो खत्म हुआ
कुछ परिवर्तन हो गया
कानों मे आ कर कह गया
आज से में बदलने लगा
दूब की नोंक पर
हर रोज़ मिला करूँगी मैं,
ओस,
बस आ जाना सूरज के पहले
पूरब में आने की आहट से पहले।

(दिल्ली में खुशनुमा मौसम की सुगबुगाहट हो गयी है)

//सुरेन्द्रपालसिंह//

 http://spsinghamaur.blogspot.in/

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