Thursday, August 7, 2014

गुजरी रातें याद

कलम से____

जीवन की यह बातें और यह गुजरी रातें याद आई हैं
     जब जब तन्हाई पाई है स्मृतियों की बदली छाई है
निकल न सके हम न निकल सके तुमने आग कैसी लगाई है
     यह अपनी किस्मत है रह रह कर मुझे तेरी याद आई है
बदरा घिर आए तुम न आए तुम्हारी याद घिर आई है
     बालम मेरे आओ और न तरसाओ आखँ मेरी भर आई है।

//surendrapal singh//
08 07 2014



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