Thursday, August 7, 2014

तुम दूर रहते हो तो क्यों रहते हो

कलम से____

तुम दूर रहते हो तो क्यों रहते हो
पास रहते हो दूर से क्यों लगते हो
तुम हँसते हो तो मेरा मन क्यों हर लते हो
तुम रोते हो तो मेरे अंतस को क्यों चीर देते हो
प्रश्न मेरे, मेरे ही होकर रह जाते हैं
द्वार तुम्हारे मन के बंद क्यों हो जाते हैं
मन की पीढ़ा हरने कब आओगे
सावन बीत चला है अब कब आओगे
भइय्या भाभी रोज रोज पूछते हैं
आना कब है कुछ तो बताओगे।

कागा अटरिया बैठ काँव काँव करता है
आने की तुम्हारे चाहत और बढ़ा देता है।

खबर तुम्हारे आने की मिलती है
चेहरे पर रौनक छा ही जाती है
सामने जब तुम होगे न जाने क्या होगा
हाय अल्लाह शर्म के मारे कहीं मर न जाऊँ।

(पिछले दिनों कुछ ऐसा ही सीन होता था
अब जो नहीं दिखता है
बेहयाई सर जो सवार है मोहब्बत में सलीका अब कहाँ
अब तो खुली किताब है।)



//surendrapal singh//
08 08 2014

http://1945spsingh.blogspot.in/


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