Tuesday, August 5, 2014

ख़त लगभग खत्म हो गए

कलम से____

ख़त लगभग खत्म हो गए
अरमान मेरे लुट गए
नाज़ करते थे कभी जिन पर
वह गुजरे जमाने की बात हो गये।

चंद इन्सानों के बीच
रह शायद जाएगा
वरना वजूद ख़त का
खत्म हो जाएगा।

प्यार करने वाले
आँसू बहाएंगे
कहना चाहेगें कुछ
कुछ और ही समझे जाएगें।

प्यार की जुबां
बदल जाएगी
सारी बात
एक छोटे से मोबाइल के
एसएमएस में समा जाएगी।

कविता, कविता से
रूठ जाएगी
भावना मिट जाएगी
कल्पना भी खो जाएगी
प्यार की परिभाषा बदल जाएगी
हम सब आज जो भी कहते हैं
कुछ ऐसा न रहेगा, कुछ वैसा न होगा
दिल जो धडकता है, वो न धडकेगा
इन्सान हौले हौले पत्थर हो रहा है
पत्थर का हो जाएगा
आँसू बहाने के काबिल न रह जाएगा।

//surendrapal singh//
08 06 2014

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