Wednesday, August 6, 2014

चर्चा ए आम है

कलम से _ _ _ _

चर्चा ए आम है,
लोग यह सब बूढ़े हो गए हैं,
सोचते हैं आगे की नहीं,
बस गुजरे कल के हो रहे हैं।

यह मैं नहीं,
मुझसे नौजवान सोचते हैं,
कहते रहते है,
पिछली पीढ़ी के लोग,
बस लैला-मजनूँ, हीर-रांझा की मोहब्बतों की बातें करते हैं,
आज के वक्त में,
क्या कोई कर पाएगा,
इतना समय किसके पास है,
सूचना तकनीक के समय में,
हम नेट पर चैट कर,
अपनी कह लेते हैं,
उनकी सुनते हैं,
कभी दिल रोता है,
तो आँसू भी बहा लेते हैं ।

हमारी दुनियाँ बस यही है,
जिंदगी नेट में बस गयी है।

हम खुश हैं इस ज़माने से,
आप खुश रहें अपने ज़माने में,
तन्हाइयाँ मिटाने की,
जरूरत नहीं रह गयी,
अब न दीजिए नसीहत,
महफिल सजाने की,
खुशी और गम,
जो भी हैं वो हमारे हैं ।

//surendrapal singh//
08 07 2014




No comments:

Post a Comment