Thursday, August 7, 2014

आज न खेलौगे संग हमारे फाग

कलम से____

राधा माई कन्हाई से मिलीं जब कृष्ण द्वारिका पहुँच गए थे।

आज न खेलौगे संग हमारे फाग
जानित हों मन तोर बसत है कोई दूसर नार।

कृष्ण खड़े कुछ नहीं बोल रहे हैं। राधा आज तीर पर तीर छोड रहीं हैं।

कान्हा तुम मेरे लऐं वही रहौगे
वृन्दावन के रास रचैइया
लोगन के मन बसिया
पूजत हैं सिग लोग लुगइंया
आओ खेलें संग सखियन सें
जमुना जी बुलाय रहीं हैं
गइयां राह जोय रहीं हैं
मथुरा पूरी रोय रही है
आयजा बृज नन्दन पुकार रही हैं
असुंअन सों गली पटी हैैं
चलौ कन्हाई संग
मेरी अखियां तोय निहार रही हैैं।

कृष्ण लाचार से खडे हैैं। कुछ भी नहीं कह पा रहे हैैं। राधे उनके मन को भाँप लेती हैैं और कहती हैैं।

हे मेरे मनभावन जानूँ हूँ
तो पै काम अधिक हैैं
कैसे चलौगे तुम हमारे संग
इस रूप में तुम मन बैठे हौ
अगले जीवन की राह तकत हूँ
तब तुम हम संग ब्याह रचइयो
राधा को पूर्णरूप दिलइयो।

अब कन्हाई न स्वयं को रोक पाए और बोले।

राधे तू तौ आजहु पूरी है
दिल में मेरे बैठी है
ब्याह होत दौ लोगन में
हम तुम पहलें से ही एक हैं
लोगन के दिल मेें रहत हैं
तबही तौ सब याद करत हैं।

हमारौ रंग हमारौ रूप संग रहौ है
लोगन के दिल बसौ रहेगौ
राधे राधे बृजवासी बोलेगें
मोसों पहले तेरो नाम रटैगें।

राधे राधे जग जग गूँजैगौ
कान्हा बाद मेें पुजैगौ।

इतना कह कनहाई और राधा को गले लगाते हैं और उनका यही रूप लोगों के मन बसता है।

जै श्रीराधे।  जै श्रीकृष्ण।

//surendrapalsingh//
08 08 2014

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