Sunday, August 31, 2014

कल दिन में तुम बरसे थे ।

कलम से____

कल दिन
में
तुम बरसे थे
शायद
मज़बूरी में बरसे थे
पर
अच्छे बरसे थे
असर
उसका दिखने लगा है
दूब फिर हरी होने लगी है
पेड़ो में कलियाँ खिलने लगीं है
भ्रमर दुबारा मंडराने लगे हैं
पराग इधर से उधर जाने लगे हैं
फूल बागों में महकने लगे हैं
वी भी वहाँ अब दिखने लगे हैं
पास आकर कहने लगे
चलो चल कर बैठते हैं
थोड़ी देर को ही सही
एक दूजे को नज़र भर देखते हैं !

जिन्दगी के सफर में
कब कहाँ फिर मिलेंगे
हाथों में हाथ ले लो
अबके मिले न जाने फिर कब मिलेंगे !!

अबके मिले न जाने........................!!!

//surendrapalsingh//

1 comment: