Friday, August 22, 2014

बारिशें अबके हुईं हैं कम अहसास है मुझे ।

कलम से____

बारिशें अबके हुईं हैं कम अहसास है मुझे
पेड़ पौधे सूख चले हैं ये दिख रहा है मुझे।

चलेंगी गरम हवाएँ अभी से सोचा नहीं था
मुश्किल आन पड़ी है बहुत बड़ी अभी से।

धान सूख रहा है फसल है बरबादी के कगार
आखँ के आसूँ लाख बहें न सकेगें हमें उबार।

जलाशय खाली पड़े बिजली मिलती है नहीं
सरकार का रोना वही उत्पादन ही नहीं है।

दूब सूख रही बचीखुची आस मेरी टूट रही है
जमाने के लिए हसँता हूँ भीतर से टूट गया हूँ।

हे ऊपर वाले क्यों इतना निर्दयी बना बैठा है
कुछ तो कर अब ये तूफान संभलता नहीं है।

तैयार हो रहा हूँ मैं एक कठिन फैसले के लिए
उम्मीद की आखिरी आस बस अब तुझपे टिकी है।

//surendrapalsingh//

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