कलम से....
ए के तिवारी जी के निमंत्रण पर थे,
हम शहर हैदराबाद में यह आज से ग्यारह साल पहले की बात है।
गोलकुडाँ फोटॆ के भीतर,
गाइड की कही कहानी
याद आ रहीहै,
पुराने जमाने में
हर बादशाह मौत के बाद
अपने दफ़न के लिए
अपनी जिंदगी रहते ही
खूबसूरत मुकाम बनवाते थे।
इतना कहते ही
उसने इशारा कर बताया
कि वो दूर जो नज़र आ रहीं हैं
फलां बादशाह की कब्रगाह है औ' वो उसकी।
आज मुझे जब यह याद आता है
तो मैं पाता हूँ
कि अपने आगरे औ' दिल्ली में भी तो
कितनी खूबसूरत इमारतें है,
जो अमीर उमरा की कब्रगाह ही तो हैं।
एक उसमे से ताजगंज का ताज भी है।
जिसे दुनिया मोहब्बत की निशानी मानती है।
स्मरण हो आता है....
उन खूबसूरत छतरियों जो शहर ग्वालियर,
शिवपुरी, जैसलमेर, जयपुर, जोधपुर वगैरह में नजर आतीं हैं।
ऐ सब भी किसी न किसी
राजा औ' महाराजा की समृति
मे बनवांई गयीं हैं।
आप ध्यान से देखें
तो फकॆ पाएँगे कि कुछ
अपने मरने के पहले ही
इमारतें बनबा दिया करते थे,
कुछ के लिऐ
ऊनके मरने के बाद बनबाई जातीं थीं।
इतिहास गवाह है
किसी ने किसी को सत्ता के लालच मे मरवा दिया,
किसी ने किसी की यादों को
पत्थर के महल में सजा अमर औ' अज़र कर दिया ।
आने वाली नस्ल सिफॆ
उनको याद करेगी,
जिसने पत्थर के ऊपर पत्थर सजा दिया ।
आज भी हम सज़दे में वहीं जाते हैं,
जहाँ पत्थर ही पत्थर हम पाते हैं,
कहीं हम नमाज़ पढ़ते हैं
कहीं पत्थर के देवता पूजे जाते हैं
आखिर में पत्थर है जो
पत्थर ही नज़र आता है।
घरौंदे चिडियां बनातीं हैैं
इस उम्मीद से
लंबी कटेगी जिन्दगी
होता है ऐसा नहीं
इन्सान भी आशियाँ
बनाता है सोच कर
साथ साथ रहेंगे भर जिन्दगी
उसे क्या पता
पर उगते ही उड जाएगें
फुर्र से पंक्षी उसके........
दूर हो जाएगें औ' दूर चले जाएंगे।
//surendrapalsingh//
http://spsinghamaur.blogspot.in/
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