Saturday, August 23, 2014

बार बार ख्याल एक सताता है

कलम से____

बार बार ख्याल एक सताता है
होगा कल क्या
कुछ समझ नहीं आता है।

सोच कर परेशान बहुत होता हूँ
नहीं रहूँगा एक दिन
मैं जब
क्या करोगी, क्या न करोगी तुम
पहेली सी बन जाती है
प्रश्न खडा बड़ा कर जाती है।

तुम हो
शान्त
निशब्द बनी रहती हो
कुछ नही
कुछ भी नहीं
कहती हो
शायद जानती हो
एक दिन
कोई आएगा
साथ लिए जाएगा
लौट वहाँ से
न कोई ला पाएगा।

अब कहाँ सावित्री
कहाँ वह देव जो वचन निभाएगा
सत्यवान आखिर में
बलिदान हो जाएगा
अपने जीवन के
प्रारब्ध को पहुँच जाएगा।

शाश्वत सच को कौन भला कैसे झुटलाएगा?

//surendrapal singh//

http://spsinghamaur.blogspot.in/

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