Monday, August 11, 2014

आखँ बंद हो चली परेशान है जिन्दंगी


कलम से____

आखँ बंद हो चली परेशान है जिन्दंगी
काम कुछ है नहीं बैचेनी है अब बढ़ी
मन उदास हो चला आस खत्म हुई
आखिरी पडाव आ हारती है जिन्दंगी।

फूल शूल हैं बने घर में आग है लगी
कौन बचाएगा हर एक को अपनी पडी
पानी पानी सब करें करै न कोई उपाय
पेड लगाया बबूल का तो आम कंहा से खाय।

तहखानों में रखी हैं लाशें इन्सान के लिए जगह नहीं
भीड इस कदर बढी है पैर रखने के लिए जमीन नहीं
इन्सानियत खत्म हो रही यहाँ हैवानियत सवार है
आदमी क्या करे भगवान मी परेशान औ' लाचार है।

//surendrapal singh//

http://spsinghamaur.blogspot.in/

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