कलम से____
आखँ बंद हो चली परेशान है जिन्दंगी
काम कुछ है नहीं बैचेनी है अब बढ़ी
मन उदास हो चला आस खत्म हुई
आखिरी पडाव आ हारती है जिन्दंगी।
फूल शूल हैं बने घर में आग है लगी
कौन बचाएगा हर एक को अपनी पडी
पानी पानी सब करें करै न कोई उपाय
पेड लगाया बबूल का तो आम कंहा से खाय।
तहखानों में रखी हैं लाशें इन्सान के लिए जगह नहीं
भीड इस कदर बढी है पैर रखने के लिए जमीन नहीं
इन्सानियत खत्म हो रही यहाँ हैवानियत सवार है
आदमी क्या करे भगवान मी परेशान औ' लाचार है।
//surendrapal singh//
http://spsinghamaur.blogspot.in/
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