कलम से____
बहती है इन आँखों से अविरल अश्रु धारा
कौन आसानी से है जाता छोड अपनी जननी धरा
शेष बचा नहीं अब कुछ जिस पर आस बुंने तानाबाना
पंक्षी छोड जा रहे जब देश हुआ बेगाना
काम कुछ बचा नहीं नया कुछ हुआ नहीं आस है डूबी
डूब गया संसार हमारा भृकुटी उसकी जब तनी
शीर्ष हमारा ही हमसे रूठा अब न बसेगा जो घर है टूटा
चल प्यारे नया संसार रचें
भूलें उन यादों वादों को जो न हुए अपने
आखों की दो बूंद पाषाण हो गई
अपनी भी दुनियां यहाँ से अब उठ गई।
//surendrapal singh//
08 08 17 2014
http://spsinghamaur.blogspot.in
बहती है इन आँखों से अविरल अश्रु धारा
कौन आसानी से है जाता छोड अपनी जननी धरा
शेष बचा नहीं अब कुछ जिस पर आस बुंने तानाबाना
पंक्षी छोड जा रहे जब देश हुआ बेगाना
काम कुछ बचा नहीं नया कुछ हुआ नहीं आस है डूबी
डूब गया संसार हमारा भृकुटी उसकी जब तनी
शीर्ष हमारा ही हमसे रूठा अब न बसेगा जो घर है टूटा
चल प्यारे नया संसार रचें
भूलें उन यादों वादों को जो न हुए अपने
आखों की दो बूंद पाषाण हो गई
अपनी भी दुनियां यहाँ से अब उठ गई।
//surendrapal singh//
08 08 17 2014
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