Saturday, August 16, 2014

पहाडी के पीछे से तुम आते हो

कलम से____

हर दिन पहाडी के पीछे से तुम आते हो
काम अधिक करने हैं संदेश कानों में दे जाते हो।
मनवा मेरा पागल है तैयारी काम की करता है
टूट जाता है एक बिखरा स्वपन सा लगता है।

है कहाँ काम बचा जो था भी वह सब खत्म हुआ
बरबादी चहुँओर हई है सबकुछ तबाह है हुआ

शिव के तांडव से पर्वत ध्वस्त हुआ आस्था का दीप है बुझा
आशा टूटी फूटी किस्मत ले कहाँ जाऊँ काम कहां से मैं लाऊँ।

//surendrapal singh//

http://spsinghamaur.blogspot.in/

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