Friday, August 29, 2014

सदाबहार नाम है इस सुंदर से फूल का ।

कलम से____

सदाबहार नाम है
इस सुंदर से फूल का
पांच पत्तियों से सुसज्जित रहता है
पहले अक्सर दिखाई पड़ जाता था
अब मुश्किल से दिखता है !!

धीरे धीरे लुप्त हो जाएगा
कैंसर की दवाई बन कर
कुछ लैब्स की शोभा बढ़ाएगा
शीघ्र ही बिलुप्त होती प्रजाति कह लाएगा !!

हम जान ही नहीं
पा रहे हैं
क्या खो रहे हैं
क्या पा रहे हैैं
न जाने कितने अरसे से
हम अपनों को खोते जा रहे हैं
फिर भी होश हमारे ठिकाने नहीं आ रहे हैं !!

रोने से क्या होगा
चिडिंयों को दाना तो देना होगा
सोच कर चलेगें तो आगे बढ़ेंगे
वरना मुहँ के बल गिरेगें !!!

अधिक जानकारी इस प्रकार है :-

सदाफूली या सदाबहार बारहों महीने खिलने वाले फूलों का एक पौधा है। इसकी आठ जातियां हैं। इनमें से सातमेडागास्कर में तथा आठवीं भारतीय उपमहाद्वीप में पायी जाती है। इसका वैज्ञानिक नाम केथारेन्थस है।भारतमें पायी जाने वाली प्रजाति का वैज्ञानिक नाम केथारेन्थस रोजस है। इसे पश्चिमी भारत के लोग सदाफूली के नाम से बुलाते है।

मेडागास्कर मूल की यह फूलदार झाड़ी भारत में कितनी लोकप्रिय है इसका पता इसी बात से चल जाता है कि लगभग हर भारतीय भाषा में इसको अलग नाम दिया गया है- उड़िया में अपंस्कांति, तमिल में सदाकाडु मल्लिकइ,तेलुगु में बिल्लागैन्नेस्र्, पंजाबी में रतनजोत, बांग्ला में नयनतारा या गुलफिरंगी, मराठी में सदाफूली औरमलयालम में उषामालारि। इसके श्वेत तथा बैंगनी आभावाले छोटे गुच्छों से सजे सुंदर लघुवृक्ष भारत की किसी भी उष्ण जगह की शोभा बढ़ाते हुए सालों साल बारह महीने देखे जा सकते हैं। इसके अंडाकार पत्ते डालियों पर एक-दूसरे के विपरीत लगते हैं और झाड़ी की बढ़वार इतनी साफ़ सुथरी और सलीकेदार होती है कि झाड़ियों की काँट छाँट की कभी ज़रूरत नहीं पड़ती।

वानस्पतिक संरचनाऔषधीय गुण

विकसित देशों में रक्तचाप शमन की खोज से पता चला कि 'सदाबहार' झाड़ी में यह क्षार अच्छी मात्रा में होता है। इसलिए अब यूरोप भारत चीन और अमेरिका के अनेक देशों में इस पौधे की खेती होने लगी है। अनेक देशों में इसे खाँसी, गले की ख़राश और फेफड़ों के संक्रमण की चिकित्सा में इस्तेमाल किया जाता है। सबसे रोचक बात यह है कि इसे मधुमेह के उपचार में भी उपयोगी पाया गया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि सदाबहार में दर्जनों क्षार ऐसे हैं जो रक्त में शकर की मात्रा को नियंत्रित रखते है। जब शोध हुआ तो 'सदाबहार' के अनेक गुणों का पता चला - सदाबहार पौधा बारूद - जैसे विस्फोटक पदार्थों को पचाकर उन्हें निर्मल कर देता है। यह कोरी वैज्ञानिक जिज्ञासा भर शांत नहीं करता, वरन व्यवहार में विस्फोटक-भंडारों वाली लाखों एकड़ ज़मीन को सुरक्षित एवं उपयोगी बना रहा है। भारत में ही 'केंद्रीय औषधीय एवं सुगंध पौधा संस्थान' द्वारा की गई खोजों से पता चला है कि 'सदाबहार' की पत्तियों में 'विनिकरस्टीन' नामक क्षारीय पदार्थ भी होता है जो कैंसर, विशेषकर रक्त कैंसर (ल्यूकीमिया) में बहुत उपयोगी होता है। आज यह विषाक्त पौधा संजीवनी बूटी का काम कर रहा है। बगीचों की बात करें तो १९८० तक यह फूलोंवाली क्यारियों के लिए सबसे लोकप्रिय पौधा बन चुका था, लेकिन इसके रंगों की संख्या एक ही थी- गुलाबी।१९९८ में इसके दो नए रंग ग्रेप कूलर (बैंगनी आभा वाला गुलाबी जिसके बीच की आँख गहरी गुलाबी थी) और पिपरमिंट कूलर (सफेद पंखुरियाँ, लाल पंखुरियाँ)

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