Wednesday, August 13, 2014

राजन वर्मा उवाच।

राजन वर्मा उवाच:'

मनुष्य की ये चिर-आकांक्षा रही है अजर-अमर रहने की-जो प्राकृतिक नियमों के विरूद्ध है- जो आया सो जायेगा;
तो इसां ने पत्थर के मकबरे- पत्थर-पर-पत्थर चढ़ा कर खुद को समय के दृश्य-पट्टल घड़ कर, आने वाली नस्लों के लिये यादगार बनाने की होड़ सी लग गई; मुग़ल हुक्मरानों के इस शौक ने मक़बरों का ताज-मकबरा- ताजमहल बतौर उपहार दिया- विश्व के आठवें अजूबे के रूप में;
ऋषि मारकण्डेय वृक्षों की छाया तले जीवन व्यतीत किया करते थे; उनके भक्तों ने कहा- प्रभु कोई छोटी-मोटी कुटिया बना लेते हैं- बारिश, धूप-आंधी से बचाव हो जायेगा;
मारकण्डेय जी ने कहा- चार दिन की ज़िन्दगी है- दो बीत गई- दो अौर बीत जायेगी; इन चक्करों में पड़ कर कीमती भजन-सिमरन का समय बर्बाद करना उचित नहीं; स्मरण रहे मारकण्डेय जी की आयू ८८,००० वर्ष की थी;
अौर हम हैं कि गहरी से गहरी अौर मज़बूत नींवे रखवाते हैं अपने महलों की- मानो हमने तो कभी जाना ही नहीं

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