कलम से____
बडे दरख्त तले गुजारी थी जिन्दगी
करते थे दिन रात हम उसकी बन्दगी।
सिर उठाके कभी कोशिश भी करी
समझा दिया लंबी पडी है जिन्दंगी।
चल न सको जब तलक अपने बल बूते
अच्छा यही है रहो मातहत किसी के।
सिर कुचलने को दुश्मन तैयार बैठे हैं
रहना पडेगा तुम्हें संभलके उनसे बचके।
जमाने में मिलेंगे इन्सान हर तरह के
सिला देगें कुछ चैन पाएगें बदनाम करके।
मेरे प्यारे बने तुम रहना आचंल की छांव तले
माँ साथ है तेरे कुछ न होगा कोई चाहे कुछ भी करले।
//surendrapal singh//
08 03 2014
http://1945spsingh.blogspot.in/
and
http://spsinghamaur.blogspot.in/
बडे दरख्त तले गुजारी थी जिन्दगी
करते थे दिन रात हम उसकी बन्दगी।
सिर उठाके कभी कोशिश भी करी
समझा दिया लंबी पडी है जिन्दंगी।
चल न सको जब तलक अपने बल बूते
अच्छा यही है रहो मातहत किसी के।
सिर कुचलने को दुश्मन तैयार बैठे हैं
रहना पडेगा तुम्हें संभलके उनसे बचके।
जमाने में मिलेंगे इन्सान हर तरह के
सिला देगें कुछ चैन पाएगें बदनाम करके।
मेरे प्यारे बने तुम रहना आचंल की छांव तले
माँ साथ है तेरे कुछ न होगा कोई चाहे कुछ भी करले।
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