Sunday, August 31, 2014

अहसास है मुझे शाम से ही तेरी........

कलम से____

अहसास है मुझे शाम से ही तेरी
शाम से ही तेरी
नज़र गली के हर
आने जाने वाले पर लगी रहती है
कान भी
दरवाजे पर
दस्तक की आवाज़
सुनने को तरसा करते हैं.........

क्या करें
हालात के मारे
हम भी हैं
लाख चाहने पर भी
वक्त रहते आ नहीं पाते
हर रोज
जल्दी आने का वादा कर
वादा निभा नहीं पाते......

खाली पेट
बुझे चूल्हे की
परेशानी है
इसको सुलझाने में
लगी पूरी जिंदगानी है ........

देखो शायद
अपने दिन भी बहुरेंगे
कह सब रहे हैं
लाउडस्पीकर लगा कर
तेज़ आवाज़ में
अच्छे दिन आने वाले हैं !!!

//surendrapal singh//

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कल दिन में तुम बरसे थे ।

कलम से____

कल दिन
में
तुम बरसे थे
शायद
मज़बूरी में बरसे थे
पर
अच्छे बरसे थे
असर
उसका दिखने लगा है
दूब फिर हरी होने लगी है
पेड़ो में कलियाँ खिलने लगीं है
भ्रमर दुबारा मंडराने लगे हैं
पराग इधर से उधर जाने लगे हैं
फूल बागों में महकने लगे हैं
वी भी वहाँ अब दिखने लगे हैं
पास आकर कहने लगे
चलो चल कर बैठते हैं
थोड़ी देर को ही सही
एक दूजे को नज़र भर देखते हैं !

जिन्दगी के सफर में
कब कहाँ फिर मिलेंगे
हाथों में हाथ ले लो
अबके मिले न जाने फिर कब मिलेंगे !!

अबके मिले न जाने........................!!!

//surendrapalsingh//

मंद मंद ही सही बहने तो लगी है !

कलम से _____

मंद मंद ही सही बहने तो लगी है !
पुरवाई याद अपनों की दिलाने लगी है !!
धोरे धीरे चलो कोई बात नहीं !
कदम दो कदम चलने से दूरियां कम होने लगीं हैं !!!!

//surendrapalsingh//

सोमवार ! मैं सोच रहा हूँ आज मैं क्या कहूँ ।

सुप्रभात मित्रों।
Good morning friends.
09 01 2014

कलम से____

सोमवार !
मैं सोच रहा हूँ
आज मैं क्या कहूँ
सब तो कह चुका हूँ
अब और क्या कहूँ !

न कहते कहते
हर दिन कुछ कह जाता हूँ
कभी दिल आपका खुश करके हटता हूँ
कभी परेशान करके जाता हूँ !!

आज बस इतना ही कहूँगा
खुश रहा करिए
औरों को भी खुश करते रहिए
खुशी छोटी छोटी बातों से मिलती है
कभी हाल उनका भी ले लिया करिए
वो आपका ख्याल रखते बहुत हैं
कभी आप उनके लिए बेहाल हुआ करिए !!!

मैने दे दी हैं सारी परेशानियां तुम्हें
तुम भी मुझे कुछ परेशानी दे दिया करो
गम बांटने से बंटते हैं
दिल में रखने से रोग बनते हैं
रोगों को दूर ही रहने दीजिए !!!

//surendrapalsingh//

आजकल के हालात पर लोग तफ्सरा जो करते हैं मज़ाक में यह कहने लगे हैं !

कलम से_____

आजकल के हालात पर लोग तफ्सरा जो करते हैं मज़ाक में यह कहने लगे हैं
आखिर माज़रा यह क्या है अब तो इन्सान भी हैवानों सा सुलूक करने लगे हैं।

अपनी तहज़ीब इन्सानियत की मिसाल जो कभी हुआ करती थी
ऐसा क्या होगया है अब खुले आम इज्जत बेआबरू हुआ करती है।

कहीं कुछ तो गडबड है हमारी समझ के  शायद जो बाहर है
शरीफ घरों की लडकियां को इज्जत बचाना हुआ अब मुश्किल है।

एक शराबी से गुफ्तगू हुई वो बात जानकर ज़नाब हम हैरान हो गए,
हम तो शराबी हैं कहा उसने वाकी के लोग किस लिए हैवान हो गए।

//surendrapal singh//

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Saturday, August 30, 2014

कर कमलों से अर्पित है ।

कलम से____

 कर कमलों से अर्पित  है
    संगिनी का यह लघु उपहार
      प्रथम प्रेम का मूतॆ रुप
        अंतःस्थल का उदगार।

   सपनों का संसार सजोते
     बीत चुके हैं दिवस अनेक
      अब तो हठ छोड़ो प्रियतम
        करती बिनती मस्तक टेक।

     तज कर अतीत का एकाकी पन
       कर लो जीवन में प्रवेश...............

//surendrapal singh//

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गिलास में ड़ाली थी ।

कलम से ____

गिलास में ड़ाली थी थोड़ी सी शराब
पता नहीं था कि तुम भी पीने आ जाओगे !!!

//surendrapalsingh//

कल रात पानी की.......

कलम से____

रात कल पानी की बूँद दो एक टपका दीं तूने
बड़ा अच्छा किया......
दूब फिर से हरी हो जाएगी !!!

//surendrapalsingh//

सुप्रभात 31st August, 2014

सुप्रभात मित्रों।
Good morning friends.
08 31 2014

कलम से____

अगस्त भी अपने समापन पर आ गया।

आज इतवार है। सभी चैन की वंशी बजा रहे हैं। हमें चैन कहाँ। सबेरे सबेरे आखँ जो खुल जाती है फिर नीदं किसे आती है।

चलते हैं
आज अपनी दुपहिया गाड़ी निकालते हैैं सवार हो उस पर चलते हैैं
राह में कुछ लोग जुड़ जाएगें
और कारवां लंबा हो जाएगा
आज कुछ लंबे चलेंगे
साथ में head turner भी रहेगें
पलट कर जब वो देखेगें
मन में हम भी मन ही मन खुश हो लेगें
इसी चक्कर में
देखा देखी कुछ लोग और बढ़ेंगे
मज़ा आएगा जितनी दूर कारवां अपना जाएगा !!

आगरा एक्सप्रेस वे तक जाएगें
चाय नाश्ता वहीं करेगें
मस्ती रहेगी
कुछ बदन में फुर्ती आएगी !!

नौजवानों के बीच रहकर
हम भी कुछ वक्त तक नौजवान बन जाएगें
जीवन के यही रंग बाद में याद बहुत आएगें !!

आज आपकी यादें ताजी हो गई होंगी
कितनी रविवार की छुट्टी ऐसै ही मनाई होगी !!

रविवार की मुबारकबाद !!!

बुड़ापा ।

कलम से____

सामने से आता हुआ नज़र आ रहा है
तुम्हारे आने में अब देर नहीं है
थोड़ा रुक सको तो रुक जाना
न रुक सको तो फिर आ जाना
आखिर कब तक तुम रुक सकोगे
आना है तुमको चाहे जब चले आना !!!

बुड़ापा !!!

//surendrapalsingh//

Friday, August 29, 2014

दिल की धडकनों को दिल ही समझता है ।

कलम से____

दिल की धडकनों को दिल ही समझता है,
हम बेखबर थे तुम भी नादान थे,
हम लोगों के दरम्यान कुछ हुआ ही नहीं था
शोर ज़माने में न जाने क्यों मचा हुआ था।

एक अफसाना जो न शुरू हुआ
और हुआ न खत्म,
दुनियां समझती रही
मुझे तेरा हमदम।

वह दिन अजीब थे
दूर से देख कर हम खुश हो लिया करते थे
उनके नजर के इशारे भी न हम समझते थे
ऐसे ऐसे बुद्धू उस वक्त हुआ करते थे।

जब याद करते हैं
हँसी आती है औ' कभी आँख दुख जाती है
बचपन की कहानी याद बहुत आती है।

//surendrapal singh//

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कार ड्राइव करते हुए बिन्डशील्ड पर दो एक बूँद दिख गईं ।

सुप्रभात दोस्तों।
Good morning friends
08 30 2014

कार ड्राइव करते हुए
बिन्डशील्ड पर दो एक बूँद दिख गईं
धीरे धीरे दो चार और गिर गईं
मैं भी सोच रहा था
जाते जाते भी
दो बदली की टुकडीं
आखिर रंग दिखा ही गईं !!

मुझे याद हो आई
गौरवर्ण गौरी की
श्यामवर्ण श्यामप्यारी की
गौरी हँस कर बोली
रोले थोड़ा कुछ रोले
अब तुझे पिया मिलेगें
बिछोह के हैं आसूँ अखियों से बह जाने दे
सजन तुझे अब शीघ्र मिलेगें !!

श्यामप्यारी वोली मेरी तू बात न कर
तू भी चल अपने सजना घर
गौरवर्ण तेरा मन उनका ललचाएगा
भागा भागा कोई पीछे तेरे आएगा
मै दूर खड़ी देखूँगी
सजन तेरे क्या करते हैं
उन्हें अचानक पाकर नयन तेरे हसँते या रोते हैं !!

सखी दोनों कभी हसँती
कभी रोतीं थीं
पानी की बूंदें बन
टपका करती थीं !!

दोनों बदली बन उड़ चली
पिया के देश
यह कर
फिर आयेगें तब बरसेंगें
उमड़ धुमड़ कर इतरायेंगे
तब अपनी नेहबारिश कर जाएगें !!

मैनें वाइपर चालू कर
बिन्डशील्ड साफ किया
उसे चलता छोड़
छोटी छोटी बूंदों को
इकट्ठा हथेली पर कर
रसपान किया !!

जाओ प्यारी जाओ अपने देश
आना फिर जब आना दिखाना असली भेष !!!

//surendrapalsingh//

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सदाबहार नाम है इस सुंदर से फूल का ।

कलम से____

सदाबहार नाम है
इस सुंदर से फूल का
पांच पत्तियों से सुसज्जित रहता है
पहले अक्सर दिखाई पड़ जाता था
अब मुश्किल से दिखता है !!

धीरे धीरे लुप्त हो जाएगा
कैंसर की दवाई बन कर
कुछ लैब्स की शोभा बढ़ाएगा
शीघ्र ही बिलुप्त होती प्रजाति कह लाएगा !!

हम जान ही नहीं
पा रहे हैं
क्या खो रहे हैं
क्या पा रहे हैैं
न जाने कितने अरसे से
हम अपनों को खोते जा रहे हैं
फिर भी होश हमारे ठिकाने नहीं आ रहे हैं !!

रोने से क्या होगा
चिडिंयों को दाना तो देना होगा
सोच कर चलेगें तो आगे बढ़ेंगे
वरना मुहँ के बल गिरेगें !!!

अधिक जानकारी इस प्रकार है :-

सदाफूली या सदाबहार बारहों महीने खिलने वाले फूलों का एक पौधा है। इसकी आठ जातियां हैं। इनमें से सातमेडागास्कर में तथा आठवीं भारतीय उपमहाद्वीप में पायी जाती है। इसका वैज्ञानिक नाम केथारेन्थस है।भारतमें पायी जाने वाली प्रजाति का वैज्ञानिक नाम केथारेन्थस रोजस है। इसे पश्चिमी भारत के लोग सदाफूली के नाम से बुलाते है।

मेडागास्कर मूल की यह फूलदार झाड़ी भारत में कितनी लोकप्रिय है इसका पता इसी बात से चल जाता है कि लगभग हर भारतीय भाषा में इसको अलग नाम दिया गया है- उड़िया में अपंस्कांति, तमिल में सदाकाडु मल्लिकइ,तेलुगु में बिल्लागैन्नेस्र्, पंजाबी में रतनजोत, बांग्ला में नयनतारा या गुलफिरंगी, मराठी में सदाफूली औरमलयालम में उषामालारि। इसके श्वेत तथा बैंगनी आभावाले छोटे गुच्छों से सजे सुंदर लघुवृक्ष भारत की किसी भी उष्ण जगह की शोभा बढ़ाते हुए सालों साल बारह महीने देखे जा सकते हैं। इसके अंडाकार पत्ते डालियों पर एक-दूसरे के विपरीत लगते हैं और झाड़ी की बढ़वार इतनी साफ़ सुथरी और सलीकेदार होती है कि झाड़ियों की काँट छाँट की कभी ज़रूरत नहीं पड़ती।

वानस्पतिक संरचनाऔषधीय गुण

विकसित देशों में रक्तचाप शमन की खोज से पता चला कि 'सदाबहार' झाड़ी में यह क्षार अच्छी मात्रा में होता है। इसलिए अब यूरोप भारत चीन और अमेरिका के अनेक देशों में इस पौधे की खेती होने लगी है। अनेक देशों में इसे खाँसी, गले की ख़राश और फेफड़ों के संक्रमण की चिकित्सा में इस्तेमाल किया जाता है। सबसे रोचक बात यह है कि इसे मधुमेह के उपचार में भी उपयोगी पाया गया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि सदाबहार में दर्जनों क्षार ऐसे हैं जो रक्त में शकर की मात्रा को नियंत्रित रखते है। जब शोध हुआ तो 'सदाबहार' के अनेक गुणों का पता चला - सदाबहार पौधा बारूद - जैसे विस्फोटक पदार्थों को पचाकर उन्हें निर्मल कर देता है। यह कोरी वैज्ञानिक जिज्ञासा भर शांत नहीं करता, वरन व्यवहार में विस्फोटक-भंडारों वाली लाखों एकड़ ज़मीन को सुरक्षित एवं उपयोगी बना रहा है। भारत में ही 'केंद्रीय औषधीय एवं सुगंध पौधा संस्थान' द्वारा की गई खोजों से पता चला है कि 'सदाबहार' की पत्तियों में 'विनिकरस्टीन' नामक क्षारीय पदार्थ भी होता है जो कैंसर, विशेषकर रक्त कैंसर (ल्यूकीमिया) में बहुत उपयोगी होता है। आज यह विषाक्त पौधा संजीवनी बूटी का काम कर रहा है। बगीचों की बात करें तो १९८० तक यह फूलोंवाली क्यारियों के लिए सबसे लोकप्रिय पौधा बन चुका था, लेकिन इसके रंगों की संख्या एक ही थी- गुलाबी।१९९८ में इसके दो नए रंग ग्रेप कूलर (बैंगनी आभा वाला गुलाबी जिसके बीच की आँख गहरी गुलाबी थी) और पिपरमिंट कूलर (सफेद पंखुरियाँ, लाल पंखुरियाँ)

//surendrapalsingh//

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Thursday, August 28, 2014

मिले जो बहुत रोज़ बाद कहने लगे किब्ला क्या हाल है ।

कलम से____

मिले जो बहुत रोज़ बाद
कहने लगे किब्ला क्या हाल है
अब आप आप नहीं रहे
अब आप खासे आम हो गए !

पहले तो समझ न पाया
कि वह क्या कह गए
जोर ड़ाला दिमाग पर
तो पाया ज़नाब चोट कर गए !

ऐसा क्या देख लिया
जो आपने यह कह दिया
हँस के वह बोले कि
आप तो अब लोगों के
फेसबुकिया यार हो गए !

शरमा गए हम भी क्या कहते
कहा ज़र्रानवाज़ी हैं आपकी
हम तो नाचीज़ हैं
चीज़ कहाँ से हो गए !!!

आदावअर्ज है.....

//surendrapal singh//

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एक पन्ने का कोना था मुड़ा हुआ...... गौर किया, पाया तुम्हारा नाम लिखा हुआ !!!

कलम से____

पुरानी डायरी पलटते हुए एक जगह आ निगाह अटक गई !
एक पन्ने का कोना था मुड़ा हुआ......
गौर किया, पाया तुम्हारा नाम लिखा हुआ !!!

//surendrapalsingh//

सुबह नौ बजे।

सुबह नौ बजे।

हम तो भूले बैठे थे
ख्वाबों के सहारे जो रहना सीख लिया था
हकीकत से दूर ही नहीं बहुत दूर
चले गए थे।

एक ही झटके ने ला पटका था
440 वोल्ट का लगा झटका था।

कल रात अचानक
बत्ती घर की गुल हो गई
रात का दो बजा था
पावर बैकअप भी ठंडा पड़ा था।
करें क्या समझ कुछ नहीं आ रहा था
टेलीफोन सबस्टेशन को किया
एजयूजअल घंटी बजती रही
उधर से उत्तर न किसी ने दिया।

समझ आया बाबू
ज़माना बदल गया है
यह सबस्टेशन अब तुम्हारा नहीं है
अटेन्डेन्ट  एक नया छोकरा है
है नीदं उसको प्यारी
दारू जो पी थी नशा उतरा नहीं है
कैसे करेगा काम अब कोई
सोने में ही उसका भला है।

रात भर हम बिलबिलाते रहे
चक्कर इधर उधर लगाते रहे
आया समझ अब कुछ न हो सकेगा
बेहतर है इतंजार करना सुबह का
अब नौ बजे फाल्ट जाके ठीक हुआ है
मुआ काम चंद मिनटों का था जो
घन्टों सात में जाके ठीक हुआ है।

राहत मिल बड़ी गई है
बिजली फिर ठीक हो गई है
पंखा चलने लगा है
हवा थोडी थोडी मिलने लगी है
खुशी इस बात की अधिक है
नैट भी फिर से चल पड़ा है
यह कविता मैं पोस्ट कर रहा हूँ
गम अपना आपसे बाँट रहा हूँ।

कितने असहाय हो चले हैं
सहारे बिना चल नहीं पा रहे हैं
सहारे के सहारे जिन्दगी हो गई है
छड़ी की जरूरत महसूस हो रही है
छड़ी भी तो आखिर है इक सहारा
सहारे को सहारे की जरूरत आन पड़ी है।

//surendrapalsingh//
08 27 2014

Wednesday, August 27, 2014

रात के अधिंयारे ।

कलम से____

रात के अधिंयारे
पावं मेरे
अपने आप उठते रहे
उस ओर बढ़ते रहे
झील के उस ओर
जहाँ तू रहता था
होश ही नहीं रहा
मैं जमीन पर हूँ
या आसमां पर
होश आया
देखा चली आई थी
दूर बहुत झील के ऊपर।

सर्द हवाओं के
बीच होंठ थे
कांप रहे
हाथों के पोर थे
जमे से हुए
भीतर की आग थी
जो बुझती न थी
मिलन को तरसती।

मिले थे तुम
इस सफर के
आखिरी छोर पर
बाहें मेरी ओर फैला
इतंजार करते।

होश बहोश थे हमारे
आगोश में थी तुम्हारे
प्यार की तपिश ही काफी थी
हमारे औ' तुम्हारे लिए ...........

//surendrapal singh//

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Tuesday, August 26, 2014

ड़ाली से टूट कर गोद में उनके जा गिरा

कलम से____

ड़ाली से टूट कर गोद में उनके जा गिरा
सभंला अभी था नहीं मुहं से निकला हाय मैं मरा।

पक जो गया था गिरना था लाजमी
गोद उनकी जो मिली मैं चोट से बच गया।

मुझे देखने आते हैं अब बाजार के कुछ लोग
खरीद कर ले जाने का इरादा करते हैं वो लोग।

मन नहीं करता है मैं जाऊँ कहीं अब और
रह जाऊँगा यहीं बनके मैं उनका सिरमौर।

पकने के बाद मैं मलिकन से ये कहूँगा
बीज वो दो पेड़ बनके फिर बाग में रहूँगा।

//surendrapalsingh//

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मिलने को तो मिलते हैं वो बडे तपाक से ऐसे लोगों के अक्सर दिल नहीं मिला करते।

कलम से____

मिलने को तो मिलते हैं वो बडे तपाक से
ऐसे लोगों के अक्सर दिल नहीं मिला करते।

हैलो कहते हैं हँसीं भी नकली सी लगती है
आह भी एक अजीब सी दिल में उठती हैै।

रिश्तों की मौत तो पहले ही हो चुकी है
पौधे को कभी प्यार से सींचा ही नहीं है।

टेलीफोन से हँस के हैलो क्या किया है
मरते हुए रिश्ते को थोडा उबार लिया है।

कुछ दिन बाद इसकी भी जरूरत नहीं रहेगी
जज्बातों के साथ साथ रिश्ते मर चुके होंगे।

//surendrapal singh//

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Sunday, August 24, 2014

आखँ खुलते ही देखा एक चमत्कार कबूतर युगल था फिर एक साथ।

कलम से____

आखँ खुलते ही देखा
एक चमत्कार
कबूतर युगल था फिर एक साथ
कौतूहल बस पूछ लिया
कहाँ गयी थी
कहने लगी हँस कर वह
मैं भी देख रही थी
करते हैं मुझसे प्यार या नहीं
बिन बताए मैके चली गई थी
लौट कर देखा है इन्हें बेहाल
वादा है मेरा
अब न जाऊँगी कभी इन्हें छोड़
रहूँगी इनके पास अब मैं सदा।

प्यार में नोंकझोंक नहो
तो जीने का मज़ा नहीं
थोड़ी बहुत तकरार
तो चलती मेरे यार।

दोनों मिल दुबारा रह रहे हैैं
परिवार के लिए कुछ प्लान बना रहे हैैं।

//surendrapalsingh//

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नज़र रखो अपने 'विचार' पर, क्योंकि वे ''शब्द'' बनते हैँ।

सुप्रभात दोस्तों।
        Good morning friends.
                08 25 2014

शुद्ध विचार अगर जीवन का हिस्सा बन जाएं तो आधा कष्ट स्वतः दूर हो जाए। कहते हैं न विनाश काले विपरीत बुद्धि। एक प्रकार से गलत विचार का जन्म लेना ही हमें गलत दिशा में ले जाता है। हमारी दिशा गडबडाते ही दशा खराब होने लगती है।हम आदर्श वादी बनने की कोशिश करें और अंत में एक रत्ती हिस्सा मात्र प्राप्त कर भी संतोष करलें तो बहुत ही अच्छा है।

 

          नज़र रखो अपने 'विचार' पर,
            क्योंकि वे ''शब्द'' बनते हैँ।

            नज़र रखो अपने 'शब्द' पर,
             क्योंकि वे ''कार्य'' बनते हैँ।

             नज़र रखो अपने 'कार्य' पर,
           क्योंकि वे ''स्वभाव'' बनते हैँ।

           नज़र रखो अपने 'स्वभाव' पर,
            क्योंकि वे ''आदत'' बनते हैँ।

           नज़र रखो अपने 'आदत' पर,
            क्योंकि वे ''चरित्र'' बनते हैँ।

          नज़र रखो अपने 'चरित्र' पर,
      क्योंकि उससे ''जीवन आदर्श'' बनते हैँ।...

      (contributed by my one friend)

//surendrapalsingh//

मागूँ तो मागूँ क्या मागूँ ।

कलम से____

मागूँ तो मागूँ क्या मागूँ
तूने सब कुछ दिया है
देना है तो दे अब अपनी मर्जी से
जो दिया है बहुत दिया है।

जीवन देकर ही बड़ा
अहसान किया है
है मुझे अहसास
कि तूने बड़ा काम किया है।

साथ मिला है उनका
जो हैं कुल श्रेष्ठ
नाम तूने ऐसे पिता का दिया है।

मै खुश हूँ बहुत
तुझे याद करके
नाम तेरा साथ रहे
यह आशीर्वाद तूने मुझे दिया है।

// surendrapalsingh//

नज़र नज़र से मिली कहर ढ़ा गई याद उसकी आज मुझे फिर आ गई।

कलम से____

नज़र नज़र से मिली कहर ढ़ा गई
याद उसकी आज मुझे फिर आ गई।

मिलने पर पूछा मेरा क्या हाल है
मुँह से मेरे निकला सब ठीकठाक है।

मिले थे हम बिछडने के कई साल बाद
बैठ कर टकरा लिए जाम कुछ देर बाद।

मस्ती में थे हम सातवें आसमां सवार
आँखों में छा रही थी धुधंली सी उनकी याद।

हम दोनों ही चाहते थे एक वस्ले यार को
छोड दिया था इसीलिए उनके ख्याल को।

सोच ही बदल दिया था छोडा न दोस्त को
इश्क से भी बडा दर्जा दिया  दोस्ती को।

//surendrapalsingh//

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Saturday, August 23, 2014

बार बार ख्याल एक सताता है

कलम से____

बार बार ख्याल एक सताता है
होगा कल क्या
कुछ समझ नहीं आता है।

सोच कर परेशान बहुत होता हूँ
नहीं रहूँगा एक दिन
मैं जब
क्या करोगी, क्या न करोगी तुम
पहेली सी बन जाती है
प्रश्न खडा बड़ा कर जाती है।

तुम हो
शान्त
निशब्द बनी रहती हो
कुछ नही
कुछ भी नहीं
कहती हो
शायद जानती हो
एक दिन
कोई आएगा
साथ लिए जाएगा
लौट वहाँ से
न कोई ला पाएगा।

अब कहाँ सावित्री
कहाँ वह देव जो वचन निभाएगा
सत्यवान आखिर में
बलिदान हो जाएगा
अपने जीवन के
प्रारब्ध को पहुँच जाएगा।

शाश्वत सच को कौन भला कैसे झुटलाएगा?

//surendrapal singh//

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सो रहे हो क्या?

कलम से____

सो रहे हो क्या?

थक कर इतना जल्दी क्यों सो जाते हो
अरमान जगा खुद चैन की वंशी बजाते हो।

रात अभी गहराई है नीदं तुम्हें क्यों आई है
उठो बैठो कुछ बात करो याद तुम्हारी आई है।

अपने हाथों में ले कुछ मेरी हथेली पर लिखो
कुछ याद आएतो दो आखर प्यार के लिखो।

मेरी हथेली पर नाम लिख मुझे निहाल करो
जान हूँ मैं मुझे जानू कह कर पुकार भर लो।

चंद्रमा चादँनी से है दामिनी बादलों से है
रंग रूप जो है मेरा सिर्फ तेरे लिए है।

जाग जाओ मेरे लिए अब न सोओ प्रीतम प्रिये
सोना अभी से नहीं बस जाग जाओ मेरे लिए।

//surendrapalsingh//

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कमजोर हो गए हो बहुत कुछ खा पी लिया करो घरवाली ने इतना कह कर मेरा दिल खुश कर दिया।

कलम से____

कमजोर हो गए हो बहुत
कुछ खा पी लिया करो
घरवाली ने इतना कह कर
मेरा दिल खुश कर दिया।

पीने के नाम पर मन प्रसन्न बहुत हुआ
खाने के लिए भुना मुर्गा मंगा लिया
बैठ गए यार चार मिल जाम टकरा दिया
मौसम में बदली छाने का इंतजार ना किया।

थोडी ही देर में वह हो गई हमपर सवार
नीचे थे हम ऊपर चढ़ बैठे थे यार
अंग्रेजी बोलने का दौर जो शुरू हुआ
रुकने को कोई भी तैयार न हुआ।

नौबत आपस में हाथापाई पर पहुंच गई
सुन कर कहानी हमारी पुलिस भी आ गई
सारा नशा काफूर हुआ पुलिस को देख कर
शरीफजादों सा व्यवहार किया सोच समझ कर।

(आज शनिवार है कुछ के लिऐ मौज मस्ती का दिन - एक कटाक्ष)

//surendrapalsingh//

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दूध मेरा लजाना नहीं....

कलम से____

दूध मेरा लजाना नहीं....

काम कुछ ऐसा करना नहीं
दूध मेरा लजाना नहीं।

नौ महीने
कोख में सभाँला था मैंने
प्रसव की पीड़ा सही थी मैंने
देखते ही पहली नजर
खुदा से दुआ की थी मैंने
लाल मेरा नाम रौशन करेगा
काम कोई तनिक वह
ऐसा न करेगा
दूध को मेरे वो न बदनाम करेगा।

नाज़ है मुझे अपनी औलाद पर
सही में वह इन्सान बना है
इन्सान रहेगा।

ए खुदा मुझे
तूने सब दिया
बडी नेमत है तेरी
बंदगी में तेरी रहेगी
मेरी पूरी जिन्दगी।

//surendrapalsingh//

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चाल ही बदल गई हाल बेहाल हुआ जिन्दगी रूक गई नैट क्या खराब हुआ।

चाल ही बदल गई
हाल बेहाल हुआ
जिन्दगी रूक गई
नैट
क्या खराब हुआ।

सूरज चढ़ आसमान गया
दिल मसल कर रह गया
भोर में ही था उठ खड़ा हुआ
सूना आकाश निहारता रहा
पक्षियों की उड़ान देखता रहा
आसपास शोर बढ़ता रहा
दिन धीरे धीरे आगे खिसकता रहा
.....

बस मैं प्रातःकाल में
सुप्रभात न कह सका।

दोस्तों क्षमा करना मुझे
नैट ने आज मुछे पीछे ढ़केल दिया।


//surendrapalsingh//

क्यों तोड़ा यह फूल मुझे समझाना क्या करोगी इसका मुझे बताना।

कलम से____

क्यों तोड़ा यह फूल मुझे समझाना
क्या करोगी इसका मुझे  बताना।

ले जाऊँगी गंगा जल से धोऊँगी
पूजा कर सिर उसके मैं चढ़ाऊँगी।

मनबसिया माखनचोरी जो करता है
सखियों संग रास रचाया करता है।

मथुरा की गलियों में वह लोगों संग
राधे राधे राधे राधे करता फिरता है।

यशोदा मइय्या की आँखों का वो तारा है
सबसे है वो न्यारा मेरा कान्हा कहलाता है।

//surendrapal singh//

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Friday, August 22, 2014

मेरी जिन्दगी सुबह सुबह ।

Good morning friends. सुप्रभात मित्रों।
08 22 2014

कभी कभी सफाई करना जरूरी होता है। इसी सफाई करने में हीरे जवाहरात मिल जाते हैं। कभी कभी कुछ ऐसा मिल जाता है जो खो गया हो।

कल घर के सफाई अभियान में मेरी भी ऐसी ही एक खोई चीज मिल गई। मेरी डायरी। काफी पुरानी। पुरानी यादों को संजोए हुए।

आज उसी डायरी के एक पुराने पन्ने की एक कतरन आपके लिए।

मेरी जिन्दगी सुबह सुबह
शुरू हो जाती है
चैन की नींद
नहीं आती है।

हर वक्त याद
सताती रहती है
माँ मुझे मेरी
बहुत याद आती है।

बचपन छूट
पीछे गया
था सुनहरा सपना सा
पर याद अब
कुछ न आता है।

इस गली
कभी उस गली
आवाज देती रहती हूँ
कुछ मुझसे लेलो
पुकारा करती हूँ
किसी किसी दिन
मालिक खुश बहुत होता है
उस रोज भर पेट खाना मिलता है।

अक्सर रोते रोते
खाली पेट
सोना पडता है
बोझ बन गई है
जिन्दंगी मेरी
अब नहीं सही जाती।

कभी कभी ही सही
सपने में आजाती थी
थपकी देकर सुला जाती थी
अब तो वो भी नहीं आती
सो गई होगी
नींद शायद उसे आ गई होगी।

//surendrapalsingh//

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बारिशें अबके हुईं हैं कम अहसास है मुझे ।

कलम से____

बारिशें अबके हुईं हैं कम अहसास है मुझे
पेड़ पौधे सूख चले हैं ये दिख रहा है मुझे।

चलेंगी गरम हवाएँ अभी से सोचा नहीं था
मुश्किल आन पड़ी है बहुत बड़ी अभी से।

धान सूख रहा है फसल है बरबादी के कगार
आखँ के आसूँ लाख बहें न सकेगें हमें उबार।

जलाशय खाली पड़े बिजली मिलती है नहीं
सरकार का रोना वही उत्पादन ही नहीं है।

दूब सूख रही बचीखुची आस मेरी टूट रही है
जमाने के लिए हसँता हूँ भीतर से टूट गया हूँ।

हे ऊपर वाले क्यों इतना निर्दयी बना बैठा है
कुछ तो कर अब ये तूफान संभलता नहीं है।

तैयार हो रहा हूँ मैं एक कठिन फैसले के लिए
उम्मीद की आखिरी आस बस अब तुझपे टिकी है।

//surendrapalsingh//

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तनहाई पूछती है परछाईं से ।

कलम से____

तनहाई पूछती है परछाईं से
तुम कहाँ हो यहाँ हो फिर वहाँ हो
मिलकर भी नहीं मिलती हो
कैसी यह आखँ मिचौली है
कुछ तो कहो यह क्या है
आखिर नजर क्यों चुराती फिरती हो।

//surendrapal singh//

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Wednesday, August 20, 2014

सुप्रभात दोस्तों। Good morning friends. 08 21 2014

सुप्रभात दोस्तों। Good morning friends.
08 21 2014

जीवन एक उत्सव है, जो यह रहस्य जान चुके हैं, सुखी हैं। जो नहीं समझे इस दर्शन को वह यातनाएं भोग रहे हैं।

जीवन के उपरोक्त दर्शन की लोग अपने समय और काल तथा सुविधानुसार व्याख्या करेगें। जीवन में अगींभूत करेगें। अच्छा होगा या बुरा कहना मुश्किल है। जो भी होगा अच्छा होगा फिलहाल यही मान कर चलना बेहतर है।

आज मैं भी Gen. Nxt. की बात करता हूँ। कल कैसा होगा, इसका कुछ बयान करता हूँ। जो अपने को बहुत Forward Think Tank कहते हैं, सोच कर कहें क्या मैं सच कहता हूँ? Time Table आप बनाएं, मैं नहीं। कब और कितना समय लगेगा अभी Forward बनने में। कितना और वक्त लगेगा? यह होगा भी, या नहीं। या शायद, फिर से हम लौट चलें जांए जहाँ से आए थे, वहीं चले चलें।

जो भी होगा, अच्छा होगा। इसके सिवाय कुछ न होगा। कुछ लोग अगाडी कह लाएगें, कुछ पिछाडी रह जाएगें।

चलिए, लेते हैं एक नजारा, कैसा होगा कल हमारा।

"थोड़े दिनों की बात है इस पीढ़ी के लोग पिछड़ जाएगें
नौजवान पीछे हमको कर आगे निकल जाएंगे।

स्कूल और कॉलेज की पढ़ाई-लिखाई घर से ही होगी
नैट की सुविधा की देर है यह व्यवस्था पूरे देश में होगी।

आफिस भी जाना न पड़ेगा डाँट अफसर की खानी न पड़ेगी
घर से निकलने का सबब ही न होगा दोस्ती यारी सब खत्म होगी।

शादी भी भला लोग क्यों करेगें जब आप्शन लिवइन रिलेशनशिप का रहेगा
अच्छा है बच्चों की मुसीबत भी न होगी हम दो की खुशी बहुत रहेगी।

ऐश करेगें मियाँ बीबी मिलकर साथ कोई न रहा करेगा
खूब खाएंगे पिया करेगें शैम्पेन की बोतल खोला करेगें।

थोड़े दिनों की बात है इस पीढ़ी के लोग पिछड़ जाएगें
नौजवान पीछे हमको कर आगे निकल जाएंगे।

जेनरेशन नेक्स्ट हर कुछ नया करेगी मानवता ......
आखँ के आसूँ भी सूख जाएगें बहें क्यों यह पूछा करेगें।"

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साथ मेरा छूटा डाली से मैं टूटा सूख गया था।

कलम से____

साथ मेरा छूटा
डाली से मैं टूटा
सूख गया था
डाली से हाथ छूट गया था।

होना है
यह सबके साथ
मुरझा कर गिर जाओगे
पग पथ थक जाओगे
फिर अपनी शाख से टूट जाओगे।

प्रकृति का नियम यही है
तुम इससे भिन्न नहीं हो
मन पक्का कर लो
दुखी होने का यह कारण नहीं है।

अश्रु न बहाना, मेरे प्यारो
पौधा नया लगाना यारो
नई कोपलें आएगीं
मन सबका हर ले जाएगीं।

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Tuesday, August 19, 2014

चल आज तुझे मैं घुमाने ले चलूँ।

कलम से____

चल आज तुझे
मैं घुमाने ले चलूँ
उगंली पकड़ कर ले चलूँ
आखिर माँ हूँ, मैं तेरी।

धूप सुहाती है
पंख तू खोल ले
सीने में साँस भर ले
आज नभ तू छू ले।

लक्ष्य देख ले
हासिल क्या करना है
उतनी लंबी उड़ान तू भर ले।

नभ मंडल विशाल है
राह भूलना तुझे नहीं है
आधिंया चलेंगी बहुत तेज
रास्ते में मुश्किलें आएगीं अनेक
मंजिल पर पहुंच कर भी रुकना नहीं है
लौट आना है वहाँ, जहां से तू ने उड़ान भरी है।

चलूं आज मैं
तुझे घुमाने ले चलूँ............

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आज चलते हैं बहुत दिन बाद गावँ की ओर।

कलम से____

08 20 2014

सुप्रभात दोस्तों। Good morning friends. Let this Wednesday bring new cheers in your life.

आज चलते हैं बहुत दिन बाद गावँ की ओर।

परिवर्तन की बयार चल रही है धीरी रफ्तार से पर चल रही है। जिन्दगी को छू रही है। कुछ लोगों को फायदा पहुँच रहा है। सब अछूते भी नहीं है।

रौशनी रौशन कर रही है अभी थोडे ही सही पर कर रही है। अभी भी एक वर्ग है जो टैक्नोलॉजी का लाभ उठा रहा है। दूसरे आस भरी निगाहों से उनकी ओर देख रहे हैं। एक दिन सूरज उनके घर में भी रौशनी लाएगा।

नई सरकार सपने दिखा रही है। सुदंर है सपनों पर तो सबका अधिकार है। सपने ही तो इन्सान को आगे ले जाते हैं। सपने भी तो आखिर अपने होते हैं।

गांव में आज भी दाता पाता हैं। दोनों में पीढ़ी दर पीढ़ी के मधुर सम्बन्ध भी बने हुए हैं।

आज एक झलक प्रगति और उन पुराने सम्बंधों की।

"ठाकुर साहब की
पुरानी हवेली में
रौनक आ गई है
जब से सोलर लाइट
वहाँ आ गई है।

वैसे तो मुआ ये अन्धेरा
अपनी किस्मत का हिस्सा है
राहत बडी महसूस होती है
चलो हम नहीं किसी की
किस्मत रौशन रहती है।

रहम दिल हैं बहुत
हमारे मालिक
दिवाली उनके घर ही नहीं
हमारे यहाँ भी मनती है।

उनके दरवज्जे से
रौशनी छन के जो आती है
मुनियां उसी में पढ़ती है
ख्वाब कुछ सजोये हैं उसने
लैपटॉप में न जाने वो क्या करती है।

सरकार ने लैपटॉप दिया है
मगर बिजली नहीं है दी
मालिक मेहरबान हैं
थोडी बहुत जो मिलती है
वो उनके सोलर प्लांट से ही मिलती है।

गरीब गरीब ही रहेगा
अमीर अमीर बना रहेगा
सलामत रहें सरकार हमारे
हमारी आस बस उनसे है
वह रहेगें, तो हम सलामत रहेगें
सरकार के सहारे न हम चले हैं, न चलेंगे।"

//surendrapal singh//

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खाली आसमां की ओर न देख ज़मीं भी है तेरी।

कलम से____

खाली आसमां की ओर न देख ज़मीं भी है तेरी।

खाली खाली बोतल है जो रहती थी भरी
महकते थे चमन कभी खुशबुंओं से तेरी।

बागबां ने लगाए फूल सोच रहेगी डाली लदी
पता ही न चला उजाड़ कर गया कोई कभी।

हबाओं के रूख में मिलती थी ठंडक जो कभी
गर्मी पड़ी अबके कुछ ऐसी सूख गई है नदी।

जो लोग देखते हैं सपने खाली करते न कुछ कभी
खुदा की रहमत से मिलता नहीं है उनको कुछ कभी।

निगाह नीची कर चलोगी तो मिलेगी दुआ सभी की
महबूब की मोहब्बत की मोहताज़ न रहोगी कभी।

खाली आसमां की ओर न देख ज़मीं भी है तेरी।

//surendrapal singh//

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Monday, August 18, 2014

नज़र नज़र से मिली कहर ढ़ा गई ।

कलम से____

नज़र नज़र से मिली कहर ढ़ा गई
याद उसकी आज मुझे फिर आ गई।

मिलने पर पूछा मेरा क्या हाल है
मुँह से मेरे निकला  सब ठीकठाक है।

मिले थे हम बिछडने के कई साल बाद
बैठ कर टकरा लिए जाम कुछ देर बाद।

मस्ती में थे हम सातवें आसमां सवार
आँखों में छा रही थी धुधंली सी उनकी याद।

हम दोनों ही चाहते थे एक वस्ले यार को
छोड दिया था इसीलिए उनके ख्याल को।

सोच ही बदल दिया था छोडा न दोस्त को
इश्क से भी बडा दर्जा दिया अपनी दोस्ती को।

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आ चल हम अपनी दुनियां में वापस चलें ।

कलम से____

आ चल हम अपनी दुनियां में वापस चलें
सपनों का महल छोड हकीकत में लौट लें।

पल दो पल को मिल सब साथ चलें
हम अपने टूटे बिखरे रिश्ते बटोर लें।

टूटी हाँडी में दाल नहीं पकती है
बुझे हुए कंडो में आचं नहीं होती है।

बिकता है बाजार जो मन भाता है
बाकी पडे पडे यूँही सड़ जाता है।

कन्धे से कन्धे रगड कर अक्सर छिल जाते हैं
दिल से दिल मिलने का कारण भी हो जाते हैं।

क्या रखा है यारो बेकार की मारा-मारी में
दिल की बात समझलो आपस की यारी में।

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डूबते सूरज को देख पल भर के लिए मैं ठहर गया ।

कलम से____

डूबते सूरज को देख
पल भर के लिए मैं ठहर गया
जहाँ था वहीं खडा रह गया
प्रश्न मन में उठा
डूब कर सूरज कहाँ गया।

शान्त चित्त बैठ
सोचने लगा
पल भर में मुझे महसूस हुआ
सूरज कहीं नहीं गया
बस वो हमारी
आँखों से ओझल हुआ।

आना जाना
उसका नित कर्म हुआ
मैं भी आया हूँ
एक दिन अपनी
राह पकड चला जाऊँगा
सबकी नज़रों से ओझल हो जाऊँगा।

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कलम से____

मन भीतर जन्मा था
एक विचार
काम पूरा हुआ
लगाया पेड कदम्ब का
होगा जब बडा
झूले उस पर पडेंगे
सावन में उसमें झूलने
मेरे मेहमान आएगें।

सखियाँ पैंग भरेंगी
ढ़ोलक की थाप पर
मल्हार सावन के गीत
राग रागिनी गाएंगी।

राधे भी होगी
होगा कन्हाई भी
भीड़ लगेगी की भक्तन की
सब मिल बोलें जै राधेश्याम की।

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थक कर इतना जल्दी क्यों सो जाते हो ।

कलम से____


सो रहे हो क्या?

थक कर इतना जल्दी क्यों सो जाते हो
अरमान जगा खुद चैन की वंशी बजाते हो।

रात अभी गहराई है नीदं तुम्हें क्यों आई है
बैठो उठो कुछ बात करो याद तुम्हारी आई है।

अपने हाथों में ले कुछ मेरी हथेली पर लिखो
कुछ याद आएतो दो आखर प्यार के लिखो।

मेरी हथेली पर नाम अपना लिख निहाल करो
जान हूँ मैं मुझे जानू कह कर पुकार भर लो।

चंद्रमा चादँनी से है दामिनी बादलों से है
रंग रूप जो है मेरा सिर्फ तेरे लिए है।

जाग जाओ मरे लिए अब न सो प्रीतम प्रिये
रातरानी है महक रही सोना अभी नहीं जगना है मेरे लिए।

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Sunday, August 17, 2014

यामिनी चादँ से कह दो, आज वो जाए न कहीं।

कलम से____

यामिनी चादँ से कह दो
        आज वो जाए न कहीं
     आ रहे हैं पिया
                बस
           यहीं रहे वो
  यामिनी चादँ से कह दो
       आज वो जाए न कहीं।

     आस है मेरी लगी
         आना है उनको यहीं
           जायें
                   न फिर कहीं
 यामिनी चादँ से कह दो
       आज वो जाए न कहीं।

वो किसी और को
  साथ लाएं
           अपने नहीं
     आएं अकेले ही सही
यामिनी चादँ से कह दो
    आज वो जाए न कहीं।

मिलन की हमारी
               यह रात है
      बात कुछ और
                     होगी नहीं
मैं और वो आज रात
                गुजारेंगे यहीं
यामिनी चादँ से कह दो
    आज वो जाए न कहीं।

यामिनी चादँ से कह दो
     आज वो जाए न कहीं.........

//surendrapalsingh//
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Saturday, August 16, 2014

दक्षिणी देश प्रदेश सभी उन्नत रहे हैं।

कलम से____

दक्षिणी देश प्रदेश सभी उन्नत रहे हैं
वैभवशाली और सम्पदा परिपूर्ण बने हैं
वही जन जाए दक्षिण दिशा जिसको हो पैसे की दरकार
बिहार उत्तर प्रदेश में क्या रखा है यहाँ है भूखे नंगों की सरकार
खा रहे पेट फूल रहा है डर इनको फिर भी नहीं लग रहा है।

हमारे मित्र भी कुछ दक्षिण चले गए हैं
चैन्नई पूना बंगलूरु में जा बस गए हैं
कहना है बस इतना याद इधर की जब आए
बिना सोचे समझे यहाँ फिर वो लौट आऐं
शिव कृष्ण राम का है निवास यहाँ
इससे सुंदर जीवन इस जग में औ' कहाँ।

अंत समय है जब आता दक्षिण की यात्रा पर शरीर है जाता
बाकी सारा जीवन राम राम राधे राधे कहते है कट जाता।


//surendrapal singh//

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पहाडी के पीछे से तुम आते हो

कलम से____

हर दिन पहाडी के पीछे से तुम आते हो
काम अधिक करने हैं संदेश कानों में दे जाते हो।
मनवा मेरा पागल है तैयारी काम की करता है
टूट जाता है एक बिखरा स्वपन सा लगता है।

है कहाँ काम बचा जो था भी वह सब खत्म हुआ
बरबादी चहुँओर हई है सबकुछ तबाह है हुआ

शिव के तांडव से पर्वत ध्वस्त हुआ आस्था का दीप है बुझा
आशा टूटी फूटी किस्मत ले कहाँ जाऊँ काम कहां से मैं लाऊँ।

//surendrapal singh//

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बहती है इन आँखों से अविरल अश्रु धारा।

कलम से____

बहती है इन आँखों से अविरल अश्रु धारा
कौन आसानी से है जाता छोड अपनी जननी धरा
शेष बचा नहीं अब कुछ जिस पर आस बुंने तानाबाना
पंक्षी छोड जा रहे जब देश हुआ बेगाना
काम कुछ बचा नहीं नया कुछ हुआ नहीं आस है डूबी
डूब गया संसार हमारा भृकुटी उसकी जब तनी
शीर्ष हमारा ही हमसे रूठा अब न बसेगा जो घर है टूटा
चल प्यारे नया संसार रचें
भूलें उन यादों वादों को जो न हुए अपने
आखों की दो बूंद पाषाण हो गई
अपनी भी दुनियां यहाँ से अब उठ गई।

//surendrapal singh//
08 08 17 2014
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अपनी ही कहानी खुद की जुबानी।


सुप्रभात दोस्तों। Good morning friends.
08 16 2014

आज रविवार है। छुट्टी का दिन। मैं भी छुट्टी के मूड में था। पर कहाँ मन हमेशा चलायमान रहता है।

याद हो आया कि अबकी बार हमारे नए पीम श्री मोदी जी ने पन्द्रह अगस्त के दिन ध्वज फहराया और इतिहास में वह पहले व्यक्ति बन गए जो स्वतंत्र भारत में पैदा हुए थे। यह मैं इस लिए कह रहा हूँ कि कमेन्ट्ररेटर ने जोर देकर यह बात रखी थी। मेरे जैसे कई लोग अभी हैं जिनकी पैदाइश को यह कहा जाएगा कि यह लोग पराधीन भारत के जमाने के हैं। लगता है कि रह भी कोई इतिहास की घटना बन ने वाली है।

चलिए जो भी हो अच्छा होता है। हमको मौका मिलता है कि कभी कभी अपने बारे में भी जानो।

आज मैं अपने जीन्स पर कुछ खोज करता हूँ।इसी सिलसिले में पारिवारिक सिज़रा भी ढूँढ डाला है। तलवार भाला चलाने वाले हम लोग बहादुरी के करतब दिखाते हुए एक जगह से दूसरी जगह जैसलमेर से इधर उधर भटकते हुए आगए इस उत्तर प्रदेश में। पूर्वजों ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जमींदारी खरीदी। फिर यहीं बस गए, यहीं के हो कर रह गए। तब से यहीं रह रहे हैं और हालात को कोस रहे हैं, कंहा आ फंसे इस उल्टा प्रदेश में वह भी अहीरस्तान,हमारा गाँव अहीर वाहुल्य इलाके में पडता है। यह पापुलेशन मैट्रिक्स आजादी के बाद तेजी से बदली है।

हमारे पूज्य दादाश्री महताब सिंह जी ने गावँ के काम में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई और जमींदारी का काम छोटे भ्राताश्री को सौंप शहर आ गए और प्रिन्टिगप्रेस का काम शुरू किया। एक लोकल साप्ताहिक अख़बार भी निकाला और इस तरह अपना पठन पाठन का शौक पूरा किया।उस वक्त(1932 के आसपास) अख़वार निकालना एक बडा और साहसिक काम माना जाता था। सभी हुक्मरान डरते रहते थे। कोई भी काम कमिश्नरी से ज़िले का बस फट से हो जाता था। उस जमाने के महत्वपूर्ण लोगों में आगरे के पंडित श्रीकृष्ण दत्त पालीवाल(सैनिक दैनिक), श्री डोरी लाल अग्रवाल जी(अमर उजाला) तथा वह सभी प्रिन्ट मीडिया से जुडे सभी नामीगिरामी लोग घर आया करते थे। हमेशा बचपन में मैने अपने दादाश्री की कलम को चलते ही देखा। कलम थी, कि चलती ही रहती थी।अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आग उगलती रहती थी। कई बार जेल भी जाना पडा पर उनकी कलम रुकी नहीं। उनके मुखारविंद से कभी कोई कडवा शब्द सुना नहीं। जीवन भर वह प्रेस से जुडे काम धन्धे में लगे रहे। दूसरा, अगर कोई शौक था तो भवन निर्माण का।ऐसे व्यक्तित्व के अन्तर्गत रह कर मेरा लालन पोषण हुआ। मैं अपनी दादी अम्मा का बहुत लाडला रहा।

हमारे मित्र एसपी त्रिपाठी जी ने एक बार पूछा था कि जब साथ रहते थे हम लोग ITI में, तब यह कलम की प्रतिभा देखने को नहीं मिली। मुझे भी इसका अहसास नहीं था।

जब पिछले साल अरसठ के हुए और जीवन के दूसरे काम और नौकरी से फुर्सत पाई तो अचानक से यह सुप्त्वस्था में पडी कलम जग गई और तब से निरंतर चल रही है। लगता है कि बुजुर्गों का यह जीन्स विरासत में जो मिले हैं, सोते से जाग गए हैं ।दो शब्द, आज बस इस कलम के नाम।

"कलम है लिखती जा रही
रुकने का नाम न ले रही
न जाने कब तक चलेगी
जब तक चलेगी
धार ऐसी ही रहेगी
इच्छा शक्ति बनी रहे
काम बुद्धि करती रहे
जब तक है जहाँ
आशिकी कलम से बनी रहे
कलम मेरी सलामत रहे
कलम ऐसे ही चलती रहे ............"

आप सभी का प्रेम और सहयोग बना रहे यह अभिलाषा है।

//surendrapal singh//

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Friday, August 15, 2014

सुप्रभात दोस्तों। Good morning friends. 08 16 2014

सुप्रभात दोस्तों। Good morning friends.
08 16 2014

एक दिन और ढेर
हो गया
जिन्दगी
एक सीढी
और चढ़ गई
कुछ खुशी मिली
कुछ अधूरी रह गई।

यही जीवन है
चलता रहे
चक्र जीवन का
पिसता हुआ इन्सान
भागता हुआ
कभी अदृश्य
कभी साफ तौर पर दिखते
लक्ष्य
का पीछा करता हुआ।

आज नया सवेरा
आया है
दिल फिर
भरमाया है
जागो मेरे प्यारे जागो
अलसायेपन को छोडो
मस्त पवन बह रहा है
बगिया में कोई बुला रहा है
चलो उसका पीछा करो
थोडी दूर ही सही
उसके साथ चलो
थक कर बैठो नहीं
दम भर प्रयास करो
चले चलो चले चलो।

अब कल फिर परसों
की तैयारी करो
कान्हा आने वाला है
अष्टमी को मिलन
हमारा होने वाला है।

चलते रहो चलते रहो।

धन्यवाद।
शुभकामनाएं।

यह कहानी है बडी निराली जो जा रहा हूँ मैं आज सुनाने आपको।

कलम से____

मित्रों,
यह कहानी
है बडी निराली
जो जा रहा हूँ मैं
आज सुनाने आपको।

बिहार का था
एक परिवार
जीवन यापन
कैसे होगा
आगे कैसे चलेगा
कर रहा था
गहन सोच विचार।

सपने मैं एक रात
कोई आया
उसने था यह सुझाया
अब न हो पाएगा
कुछ यहाँ तेरा
घर जमीन जो भी है
तेरी चली जाएगी
गंगा मइय्या की
भेंट चढ़ जाएगी
बचेगा कुछ नहीं
जिसे तू अपना कह पाएगा
जा छोड चला जा
मथुरा या काशी।

अगले दिन ही
उसने ऐलान कराया
जो था उसका अपना
अब हुआ पराया
जो देगा अच्छे दाम
उसका होगा मेरा धाम।

बेच बाच सबकुछ
वह आया वृन्दावन
मन बसा लिया था
उसने बृजनन्दन
एक भव्य मन्दिर
उसने बनबाया
बिठा अपने ठाकुर को
मन ही मन मुस्काया।

वाकेंबिहारी की बलिहारी
जीवन उसका चल निकला
आता हर रोज चढ़ावा
पेट सभी का भरता
दिन में रौनक रहती थी
रात में रासलीला होती थी
कान्हा और राधा सखियन संग आते थे
हर रोज भक्त वहाँ श्रद्धालु पुष्प चढ़ाते थे।

भक्ति भाव ने जीवन उद्धार किया
एक पीढ़ी का ही नहीं
आने वाली कई पीढ़ियों बेडापार किया
आज परिणाम है दिखता
राधे राधे कर
उनका जीवन है कटता
काम न कुछ करना पडता
श्रद्धाभाव से ही जीवन है चलता।

राधे राधे। जै श्रीराधे। राधे राधे।

//surendrapal singh//

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जश्न की रात होगी

कलम से____

                   जश्न की रात होगी
                   सब ऐश कर रहे होगें
                   कुछ आज ऐसा हो जाए
                   दिल सब का खुश कर जाए।

इतंजार करेगें बेसबरी से
उस घडी का
नफरत जो है पल रही हवाओं में
शान्त पड जाए
लगी है आग जो दिल में उसे ठंडक आ जाए।

          जश्न का माहौल और रगीनं हो जाए
   दुश्मन मेरी जाँ का मेरी बाहों में आ जाए।

//surendrapalsingh//

चादँनी चादँ से कह दो आज जाए न कहीं


कलम से____

चादँनी चादँ से कह दो
आज जाए न कहीं
आ रहे हैं वो
बस वह रहे यहीं
चादँनी चादँ से कह दो
आज जाए न कहीं।

आस मेरी लगी है
आना है उनको यहीं
जाएगें फिर नहीं
चादँनी चादँ से कह दो
आज जाए न कहीं।

वो किसी और को
साथ अपने लाएं नहीं
आएं अकेले ही सही
चादँनी चादँ से कह दो
आज जाए न कहीं।

हमारे मिलन की रात है
बात कुछ और होगी नहीं
मैं और वो रात गुजारेंगे यहीं
चादँनी चादँ से कह दो
आज जाए न कहीं।

चादँनी चादँ से कह दो
आज जाए न कहीं.........

//surendrapalsingh//
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Wednesday, August 13, 2014

सुन पिया सो रहे क्या?

कलम से____

सुन पिया
सो रहे क्या?

तुझे अभी से सोने की पड़ी है
अभी तो पूरी रात पड़ी है
उठ बैठो,
कुछ कहो
कुछ मेरी सुनो
देखो कितनी सुन्दर
चांदनी बिखरी पड़ी है।

अभी से तू सो जाएगा
क्या करूँगी मैं,
समझ मेरे कुछ न आएगा
रात भर परेशान रहूंगी
उठ जा बैठ
मेरे बैरी पिया।

मौगंरे की खुशबू दीवाना कर रही है
परिजात के फूलों की सेज सज रही है
चंदा की चादंनी मन ललचा रही है
कैसा है रे पिया
अभी शाम से
तुझे नीदं सता रही है।

आ, मेरे गेसुओं से खेल तो जरा
लाये थे चमेली का जो हार
जूड़े में लगा के देख
लगता है कैसा
देख ले
मन तेरा डोल न जाए
आज यह देख ले
नैन अपने ज़रा आज पिया
अपने खोल ले।

सोने न दूँगी
परेशान कँरूगी
मै रहती हूँ परेशान
तुझे परेशान कँरूगी।

उठ सजन बोले
कानों में रस सा घोले
चल सजनी
मान ली तेरी बात
न तू सोएगी
न सोऊंगा मैं, आज सारी रात।

//surendrapal singh//

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गोलकुडाँ फोटॆ ।


कलम से....

ए के तिवारी जी के निमंत्रण पर थे,
हम शहर हैदराबाद में यह आज से ग्यारह साल पहले की बात है।

गोलकुडाँ फोटॆ के भीतर,
गाइड की कही कहानी
याद आ रहीहै,
पुराने जमाने में
हर बादशाह मौत के बाद
अपने दफ़न के लिए
अपनी जिंदगी रहते ही
खूबसूरत मुकाम बनवाते थे।
इतना कहते ही
उसने इशारा कर बताया
कि वो दूर जो नज़र आ रहीं हैं
फलां बादशाह की कब्रगाह है औ' वो उसकी।

आज मुझे जब यह याद आता है
तो मैं पाता हूँ
कि अपने आगरे औ' दिल्ली में भी तो
कितनी खूबसूरत इमारतें है,
जो अमीर उमरा की कब्रगाह ही तो हैं।

एक उसमे से ताजगंज का ताज भी है।
जिसे दुनिया मोहब्बत की निशानी मानती है।

स्मरण हो आता है....

उन खूबसूरत छतरियों जो शहर ग्वालियर,
शिवपुरी, जैसलमेर, जयपुर, जोधपुर वगैरह में नजर आतीं हैं।

ऐ सब भी किसी न किसी
राजा औ' महाराजा की समृति
मे बनवांई गयीं हैं।

आप ध्यान से देखें
तो फकॆ पाएँगे कि कुछ
अपने मरने के पहले ही
इमारतें बनबा दिया करते थे,
कुछ के लिऐ
ऊनके मरने के बाद बनबाई जातीं थीं।

इतिहास गवाह है
किसी ने किसी को सत्ता के लालच मे मरवा दिया,
किसी ने किसी की यादों को
पत्थर के महल में सजा अमर औ' अज़र कर दिया ।

आने वाली नस्ल सिफॆ
उनको याद करेगी,
जिसने पत्थर के ऊपर पत्थर सजा दिया ।

आज भी हम सज़दे में वहीं जाते हैं,
जहाँ पत्थर ही पत्थर हम पाते हैं,
कहीं हम नमाज़ पढ़ते हैं
कहीं पत्थर के देवता पूजे जाते हैं
आखिर में पत्थर है जो
पत्थर ही नज़र आता है।

घरौंदे चिडियां बनातीं हैैं
इस उम्मीद से
लंबी कटेगी जिन्दगी
होता है ऐसा नहीं
इन्सान भी आशियाँ
बनाता है सोच कर
साथ साथ रहेंगे भर जिन्दगी
उसे क्या पता
पर उगते ही उड जाएगें
फुर्र से पंक्षी उसके........
दूर हो जाएगें औ' दूर चले जाएंगे।

//surendrapalsingh//

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राजन वर्मा उवाच।

राजन वर्मा उवाच:'

मनुष्य की ये चिर-आकांक्षा रही है अजर-अमर रहने की-जो प्राकृतिक नियमों के विरूद्ध है- जो आया सो जायेगा;
तो इसां ने पत्थर के मकबरे- पत्थर-पर-पत्थर चढ़ा कर खुद को समय के दृश्य-पट्टल घड़ कर, आने वाली नस्लों के लिये यादगार बनाने की होड़ सी लग गई; मुग़ल हुक्मरानों के इस शौक ने मक़बरों का ताज-मकबरा- ताजमहल बतौर उपहार दिया- विश्व के आठवें अजूबे के रूप में;
ऋषि मारकण्डेय वृक्षों की छाया तले जीवन व्यतीत किया करते थे; उनके भक्तों ने कहा- प्रभु कोई छोटी-मोटी कुटिया बना लेते हैं- बारिश, धूप-आंधी से बचाव हो जायेगा;
मारकण्डेय जी ने कहा- चार दिन की ज़िन्दगी है- दो बीत गई- दो अौर बीत जायेगी; इन चक्करों में पड़ कर कीमती भजन-सिमरन का समय बर्बाद करना उचित नहीं; स्मरण रहे मारकण्डेय जी की आयू ८८,००० वर्ष की थी;
अौर हम हैं कि गहरी से गहरी अौर मज़बूत नींवे रखवाते हैं अपने महलों की- मानो हमने तो कभी जाना ही नहीं

Monday, August 11, 2014

कलम है जा लिखती रही

कलम से____

कलम है जा लिखती रही
रुकने का नाम न ले रही
न जाने कब तक चलेगी
जब तक चलेगी
धार ऐसी ही रहेगी
इच्छा शक्ति बनी रहे
काम बुद्धि करती रहे
जब तक है जहाँ
आशिकी कलम से बनी रहे
कलम मेरी सलामत रहे
कलम ऐसे ही चलती रहे ............

//surendrapal singh//

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आखँ बंद हो चली परेशान है जिन्दंगी


कलम से____

आखँ बंद हो चली परेशान है जिन्दंगी
काम कुछ है नहीं बैचेनी है अब बढ़ी
मन उदास हो चला आस खत्म हुई
आखिरी पडाव आ हारती है जिन्दंगी।

फूल शूल हैं बने घर में आग है लगी
कौन बचाएगा हर एक को अपनी पडी
पानी पानी सब करें करै न कोई उपाय
पेड लगाया बबूल का तो आम कंहा से खाय।

तहखानों में रखी हैं लाशें इन्सान के लिए जगह नहीं
भीड इस कदर बढी है पैर रखने के लिए जमीन नहीं
इन्सानियत खत्म हो रही यहाँ हैवानियत सवार है
आदमी क्या करे भगवान मी परेशान औ' लाचार है।

//surendrapal singh//

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ईद के चाँद हुइ गइल हो कंहा रहत हो भाई?

कलम से____

ईद के चाँद हुइ गइल हो कंहा रहत हो भाई?

का हो गुलरी के फूल हो गईल हउवा?

हाल यार का पूछने का अन्दाज गजब है
दिल मेरा लुट गया है मिला बडा सुकून है।

मासूमियत टपकती है अदांजे वयां में
मिलेगा प्यार इतना कहाँ इस जहां में।

कुरबान हूँ मैं तुम्हारी इन अदाओं पर
मिलेगा चैन नहीं कहाँ तुम्हें छोड कर।

हमरे बप्पा, हमरे कक्का यहीं दफन हैं
हम न जाइब अपनी धरती छोड कर।

मंजूर है मरना यहाँ, दफ्न हो जाएगें यहीं
जाएगें और कहीं न, हमारा वतन है यही।

//surendrapalsingh//
08 10 2010
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हिचकियाँ।

कलम से____

हिचकियाँ।

याद आए कोई जब खास अपना
आए सताए रुलाए उसका सपना
कभी भी किसी को यह न बताना
फिर न आएगा उसका हसीन सपना।

आया था रात कल फिर छेड रहा था
साथ चलने की जिद वो कर रहा था
एक मैं ही थी जो खुद को रोक रही थी
मन था साथ जाने की कह रहा था।

कैसे जाऊँ मैं अब ऊसके निकल साथ
जमाना बहुत है खराब क्या कहेगा
हिम्मत करती हूँ फिर टूट जाती हूँ
मुझसे यह ममुमकिन हो न सकेगा।

क्या मैं करूँ दुविधा आन पड़ी है बड़ी
छोड दुनियां के चलन अब निकल पड़ी
धर धीरज कर मन पक्का निकल मैं पड़ी
राह तक रही लंबी पड़ी है जिदंगी अभी ।

आगई हूँ उस मोड पर जाना पीछे मुमकिन अब नहीं है
बढ़ना ही आगे पडेगा और रास्ता अब कोई नहीं है।
छोड़ दी है नैया
मझधार में मौजों के सहारे
जो होगा अच्छा होगा
मैं हूँ अब उसके सहारे।

//surendrapal singh//

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Sunday, August 10, 2014

मालती के फूलों की अटरिया।

कलम से____


हवेली की चौथी मंजिल पै
अटरिया बनबाय दयी है
मालती की बेल लगी है
फूलन सौं लदाय रयी है
अब आय जाऔ औ' पधारो
ठाकुर जी तुम मेरे मन बैठौ
राधे, श्याम कौं बुलाय रयी है।

सामनैं बैठ मैं तोय निहारेंगौ
मन भीतर राधेश्याम कहेगौं।

राधे राधे।जै राधे राधे।राधे राधे।

//surendrapal singh//

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मालती के फूलों का मन्डप।

कलम से____


मालती के फूल।

बहुत दिनों
की
तलाश के बाद
यह
ज्ञात हुआ कि
चौथी
मंजिल पर मंडप
बना हो
मालती की बेल
आच्छादित हो
रंग बिरंगे फूलों से
मण्डप लदा हो
ऐसी मनोहारी जगह
कान्हा राधा
मिलने
आते हैं।

तब से तलाश है
मेरी
यह आस है
ऐसा
स्थान बने
जिसमें
मेरे
राधेश्याम
पधारें मुझे अनुग्रहीत करें।

मिल गई है
ढूढं ली एक जगह
अपने ही घर में
हृदय मंदिर में
मण्डप मालती का
बनाऊँगा
फिर अपने
राधेश्याम
को बुला बिठाऊँगा।

मेरी अभिलाषा
तेरी अभिलाषा बने
जग में राधे राधे का नाम पुजै
बस यही चाहत है मेरी
तेरी भी चाहत बने।

//surendrapal singh//

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Saturday, August 9, 2014

नदी किनारे हूँ।

कलम से____

नदी
किनारे हूँ खडा
दिल बाग बाग है
बहती नदी का
सातसुरी
संगीत
लग मधुर बहुत
रहा है।

नदी
की सतह के
ऊपर
सतरंगी
इन्द्रधनुष
है दिख जाता
जो
शहरों में
पीछे भवनों के
छिप गया है।

कभी
महसूस करना
हर दिल में
एक नदी
होती है
बहती रहती है।

बुलाती है
हम
बस सुनते
नहीं है
......या सुनना ही नहीं
चाहते हैं।

मैनें सुनी है
तुम भी
सुनो
घर से बस निकल पडो
छुट्टी का दिन है
कुछ
आज
अजीब सा करो।

//surendrapalsingh//
08 10 2010
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मिठाई

कलम से____
खाओ मित्रों खाओ
खूब मन भर खाओ
खोया मावा अबके 
नकली नहीं है
फिर खाने में ऐतराज़
कंहा और क्यों है।
मावा नकली होता
पुलिस सीज़ कर देती
दुकान जो सजी पडी है
बंद कभी की होती
टीवी दिन भर चिल्लाता
मिठाई खाना ठीक नहीं है।
सब भूले बैठे हैं
मतलब साफ है इसका
दूध असली और सही है
दूध असली है तो
खोया मावा नकली कैसे होगा
भाजपा के राज्य में
दूध महंगा है महंगा ही रहेगा।
खाओ दोस्त खाओ
आज राखी का दिन है
एक दिन खा लोगे तो क्या होगा
इतने के लिए डाक्टर भी हाँ बोलेगा।

रक्षा बन्धन की हार्दिक शुभकामनाएं।
//surendrapalsingh//
08 10 2014

अंतस को चीर गई



अंतस को चीर गई
छिपी हुई सी थी जो
हिबडे के किसी कोने
में सुप्त्वस्था में याद
फिर जग गई, अंतस को चीर गई।

सिरहन सी उठती
है जब स्मृति सोई
जग जाती है अंतस
पीर पराई अपनी सी
क्यों लगती है जब
जब जगती उठती
है परेशानी बडती है
याद तेरी फिर, अंतस को चीर गई।

बार बार हम पीछे
हो जाते हैं जहां से
शुरू हुए वहीं फिर
जाते हैं हम अपने
आज में क्यों खुश
नहीं रह पाते हैं
लौट वहीं यादों से
घिर जाते हैं वादों में याद
तेरी फिर आई, अंतस को चीर गई।

घरौंदे यादों के यूँ
न छोडेंगे दिन जो
गुजारे थे परेशान और
अब दुखी करेगें याद
तेरी फिर आ गई, अंतस को चीर गई।

प्रहरी तुम सजग रहना

कलम से____

प्रहरी तुम सजग रहना
दुश्मन घात लगाए बैठा है
हर हरकत को देख ध्यान से है रहा
देना एक न मौका वार उसको करने का
थोडी भी आहट पर पहला प्रहार तुम्हारा हो
सम्पूर्ण राष्ट्र पीछे है तुम्हारे, शान बनाए रखना
अबके सिर धड से पहले उनका कलम करना
चढा कटे शीष माँ के चरणों गौरव प्राप्त करना
सीने पर हो प्रहार कडा भागते को छोड देना
प्रहरी टोलियाँ छोटी बना सजग हमेशा रहना
पुरखों की गौरव गाथा का ध्यान करते रहना
युद्ध भूमि में अंगद का पावं जमा कर लडना
अश्त्र शश्त्र की पूजा नितदिन कर्तव्य समझ करना
देवी माँ का नाम ले दुश्मन के सीने चढ़ना
भारत माता का सपूत है तू इसे भूल न जाना
नाज़ करे दुनियां सारी काम ऐसा करना
चढ़ जा चढ़ जा हिमालय तेरा है अपना
चोटी बैठ निगाह दुश्मन पर बनाए रखना
प्रहरी हमेशा चुस्त दुरुस्त चौकन्ने रहना
दुश्मन की सोच से दो कदम आगे रहना
रणभूमि में रणभेरी हो जब सदैव सजग रहना
वार दुश्मन पर हो पहला तेरा यह प्रयास करना

प्रहरी हम सब तेरे पीछे हैं
भारत माँ की लाज तुम्हारे ही हाथ है ध्यान बनाए रहना।

//surendrapalsingh//




मेरे प्यारे मोर भइय्या

कलम से____

राधिका आज प्रभु के लिए कुछ पक्षीराज मोर से अपने कान्हा के लिए मागँ रही हैं...........

मेरे प्यारे मोर भइय्या
मोरपंख सिर सजै कान्हा कै
मोय आज चहियें तोसूँ
रूठ गये हैं वो मोसूँ
मनाइय लेऊँगी दै कें वाकूँ
सिरमौर सजैगौ जाकें
बस एक मागूँ हो तोसें।

लै लै बहिना लै लै
जो चहियें सो तू लै लै
तू मेरी सखी पियारी है
लागत मोय सिगमें नियारी है।

आँखिन सों आसूँ टपकि रहे हैं
पीर मोर हिय जानें रोय रये हैं
मन ही मन राधे सियाय रयी हैं
कान्हा संग रास रचाय रयी हैं।

लैकें मोरपंख चली राधिके
कन्हाई कौ दै दयो साधकें
लेउ लगाओ धारण करौ
मन सखिंयन कौ हर्षित करौ।

कान्हा बहुत प्यार से मोरपंख ग्रहण कर अपने सिर बिठाते हैं। सभी का अभिनंदन करते हैं।

//surendrapalsingh//
08 10 2014


भूख ने मुझे इन्सान बना रखा है.........

कलम से____


भूख ने मुझे इन्सान बना रखा है.........

इस भूख ने मुझे दिया है
एक नया सोच
कुछ कर ऐसा मिले सभी को भोज
नित नए प्रयोग होते रहैं
बीज नए मिलते रहैं
फसल दिन दूनी हो
लागत भी कम हो
जल जीवन है नष्ट न हो
बूँद बूँद से अन्न ऊगे
मूलमंत्र यही रहे नीति ऐसी बनी रहे।

कृषि प्रधान देश हैं हम
किसान हमारा बहुत अहम है
यह सब हो रहा है
फिर भी उन्नत किसान नहीं है
माल बीच के उडा रहे हैं
फिर भी ध्यान इधर नहीं है।

भूख ने मुझे इन्सान बना रखा है........

दिन अच्छे आने का वादा है
अभी तक कुछ न दिखा है
करो मेरे मित्रों कुछ काम
खाली बैठ न होगा कोई काम
सत्ता के गलियारे में बैठो खाली
अब यह न चलेगा
एक किसान
आखिर पेट तुम्हारा कब तलक भरेगा
जमीन पर आओ
काम करो और नाम कमाओ
खाली नारों से काम नहीं चलेगा।

भूख ने मुझे इन्सान बना रखा है.......

गल्ले रखने के गोदाम बनाओ
जो पैदावार नष्ट हो रही बचाओ
सडते अनाज के दानों पर
राजनीति करना ठीक नहीं है
कृषि को उचित मान सम्मान दिलाओ
यह राष्ट्रीय नीति अभी नहीं है
हक किसान के छीनोगे
जमीन हडप करोगे
ठीक नहीं होगा
खेती बाडी वाली जमीन छीनना
ऐसा करना अपराध बहुत बडा होगा।

याद रहे.....
भूख ने मुझे इन्सान बना रखा है.........

बस इतना करना
मैं इन्सान हूँ
मैं किसान हूँ
इन्सान बनाए रहना ............

//surendrapal singh//
08 09 2014

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Thursday, August 7, 2014

आज न खेलौगे संग हमारे फाग

कलम से____

राधा माई कन्हाई से मिलीं जब कृष्ण द्वारिका पहुँच गए थे।

आज न खेलौगे संग हमारे फाग
जानित हों मन तोर बसत है कोई दूसर नार।

कृष्ण खड़े कुछ नहीं बोल रहे हैं। राधा आज तीर पर तीर छोड रहीं हैं।

कान्हा तुम मेरे लऐं वही रहौगे
वृन्दावन के रास रचैइया
लोगन के मन बसिया
पूजत हैं सिग लोग लुगइंया
आओ खेलें संग सखियन सें
जमुना जी बुलाय रहीं हैं
गइयां राह जोय रहीं हैं
मथुरा पूरी रोय रही है
आयजा बृज नन्दन पुकार रही हैं
असुंअन सों गली पटी हैैं
चलौ कन्हाई संग
मेरी अखियां तोय निहार रही हैैं।

कृष्ण लाचार से खडे हैैं। कुछ भी नहीं कह पा रहे हैैं। राधे उनके मन को भाँप लेती हैैं और कहती हैैं।

हे मेरे मनभावन जानूँ हूँ
तो पै काम अधिक हैैं
कैसे चलौगे तुम हमारे संग
इस रूप में तुम मन बैठे हौ
अगले जीवन की राह तकत हूँ
तब तुम हम संग ब्याह रचइयो
राधा को पूर्णरूप दिलइयो।

अब कन्हाई न स्वयं को रोक पाए और बोले।

राधे तू तौ आजहु पूरी है
दिल में मेरे बैठी है
ब्याह होत दौ लोगन में
हम तुम पहलें से ही एक हैं
लोगन के दिल मेें रहत हैं
तबही तौ सब याद करत हैं।

हमारौ रंग हमारौ रूप संग रहौ है
लोगन के दिल बसौ रहेगौ
राधे राधे बृजवासी बोलेगें
मोसों पहले तेरो नाम रटैगें।

राधे राधे जग जग गूँजैगौ
कान्हा बाद मेें पुजैगौ।

इतना कह कनहाई और राधा को गले लगाते हैं और उनका यही रूप लोगों के मन बसता है।

जै श्रीराधे।  जै श्रीकृष्ण।

//surendrapalsingh//
08 08 2014

गुजरी रातें याद

कलम से____

जीवन की यह बातें और यह गुजरी रातें याद आई हैं
     जब जब तन्हाई पाई है स्मृतियों की बदली छाई है
निकल न सके हम न निकल सके तुमने आग कैसी लगाई है
     यह अपनी किस्मत है रह रह कर मुझे तेरी याद आई है
बदरा घिर आए तुम न आए तुम्हारी याद घिर आई है
     बालम मेरे आओ और न तरसाओ आखँ मेरी भर आई है।

//surendrapal singh//
08 07 2014



तुम दूर रहते हो तो क्यों रहते हो

कलम से____

तुम दूर रहते हो तो क्यों रहते हो
पास रहते हो दूर से क्यों लगते हो
तुम हँसते हो तो मेरा मन क्यों हर लते हो
तुम रोते हो तो मेरे अंतस को क्यों चीर देते हो
प्रश्न मेरे, मेरे ही होकर रह जाते हैं
द्वार तुम्हारे मन के बंद क्यों हो जाते हैं
मन की पीढ़ा हरने कब आओगे
सावन बीत चला है अब कब आओगे
भइय्या भाभी रोज रोज पूछते हैं
आना कब है कुछ तो बताओगे।

कागा अटरिया बैठ काँव काँव करता है
आने की तुम्हारे चाहत और बढ़ा देता है।

खबर तुम्हारे आने की मिलती है
चेहरे पर रौनक छा ही जाती है
सामने जब तुम होगे न जाने क्या होगा
हाय अल्लाह शर्म के मारे कहीं मर न जाऊँ।

(पिछले दिनों कुछ ऐसा ही सीन होता था
अब जो नहीं दिखता है
बेहयाई सर जो सवार है मोहब्बत में सलीका अब कहाँ
अब तो खुली किताब है।)



//surendrapal singh//
08 08 2014

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यह गुजरी रातें याद आई हैं

कलम से____

जीवन की यह बातें और यह गुजरी रातें याद आई हैं
जब जब तन्हाई पाई है स्मृतियों की बदली छाई है
निकल न सके हम न निकल सके तुम आग कैसी लगाई है
यह अपनी किस्मत है रह रह कर मुझे तेरी याद आई है
बदरा घिर आए तुम न आए तुम्हारी याद घिर आई है
बालम मेरे आओ और न तरसाओ आखँ मेरी भर आई है।

//surendrapal singh//
08 07 2014



शुभ्र धवल वस्त्र धारण किए

कलम से____

शुभ्र धवल वस्त्र धारण किए
हँस हँसिनी के युगल से लगे
दूर से पास मेरी ओर आते हुए
मनमोहक स्वरूप धरे हुए।

पास आ बैठ वो जब गए
प्रश्न मन मेरे अनेक उठ गए
पूछ बैठा कहाँ निवास है
बोले आपके ही पास है।

साहस कर फिर पूछा पता क्या है
रहते हैं हम सबके मन यही पता है
दुबारा देखा वहाँ कोई भी नहीं था
लगा मुझे मेरी आँखों का भ्रम था।

मन सच्चा हो वो हर वक्त यहीं रहता है
आसपास ही वह भी तुम्हारे रहता है।

//surendrapal singh//
08 08 2014

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Wednesday, August 6, 2014

हो जाए अचानक कभी मुलाकात उनसे

हो जाए अचानक कभी मुलाकात उनसे
ख्वाब सज जांएगे अनगिनत फिर से।

अंतस में आग मिलन की फिर लग जाएगी
शातं जो हो गई थी दुबारा सुलग जाएगी।

तेरे रूप का जादू सिर चढने लगेगा
भोला सा चेहरा तेरा दमकने लगेगा।

चमक तेरी आँखों में छा जाएगी
बिजली आकाश में कौंध जाएगी।

बरसात की रात का नजारा ही कुछ औ' होगा
बाहों में मेरी बारिश से भीगा तेरा बदन होगा।

पुरानी यादों को ताजा कर के हंस रहे होगें
फिर से बिछडने का गम सता रहा होगा।

रोना रुलाना हँसना हँसाना प्यार में होता ही है
जालिम जमाना नजर मिलने वालों पर रखता ही है।

चलो चलते हैं दूर हम एक दिन खुदा से मिलने
मांग लेगें इक दूजे को बंदे हैं हम आखिर उसके।


चर्चा ए आम है

कलम से _ _ _ _

चर्चा ए आम है,
लोग यह सब बूढ़े हो गए हैं,
सोचते हैं आगे की नहीं,
बस गुजरे कल के हो रहे हैं।

यह मैं नहीं,
मुझसे नौजवान सोचते हैं,
कहते रहते है,
पिछली पीढ़ी के लोग,
बस लैला-मजनूँ, हीर-रांझा की मोहब्बतों की बातें करते हैं,
आज के वक्त में,
क्या कोई कर पाएगा,
इतना समय किसके पास है,
सूचना तकनीक के समय में,
हम नेट पर चैट कर,
अपनी कह लेते हैं,
उनकी सुनते हैं,
कभी दिल रोता है,
तो आँसू भी बहा लेते हैं ।

हमारी दुनियाँ बस यही है,
जिंदगी नेट में बस गयी है।

हम खुश हैं इस ज़माने से,
आप खुश रहें अपने ज़माने में,
तन्हाइयाँ मिटाने की,
जरूरत नहीं रह गयी,
अब न दीजिए नसीहत,
महफिल सजाने की,
खुशी और गम,
जो भी हैं वो हमारे हैं ।

//surendrapal singh//
08 07 2014




जै श्रीकृष्ण। जै श्रीराधे।

कलम से____

नहीं जानता था
आज मैं अपना
सब कुछ खो बैठूँगा
खोकर सब कुछ
इतना प्रसन्न रहूँगा
जब कुछ अपना है ही नहीं
उसके लिए अब न रोऊँगा
जब भन लागा तेरे संग
मोह मेरा हुआ भंग
भाता तेरा सतसंग।

जै श्रीकृष्ण। जै श्रीराधे।

//surendrapal singh//
08 07 2014



उडान

एक कबूतर और कबूतरी
मेरे घर के बिन्डो एसी
पर आते हैं
रुकते हैं
रात यहीं
गुजारते हैं।
सुबह सुबह
आज मेरी निगाह उन पर पडी
पौ होने के आसपास
दोनों उठे
पंख फडफडाए
चोंच से परों को सहलाया
रात भर शान्त बैठने के बाद
बदन को फुर्ती प्रदान करने को
लंबी उडान भरने से पहले
दाना पाना की तलाश
पर निकलने के पहले
अंगडाई ली
और जब बदन खुल गया
उड गए लंबी उडान पर
आशाओं की ओर
प्रीत की भोर।
मित्रों,
उठो
आप क्या सोच रहे हो
चाय बना खुद पियो
सहभागी को उठा
उसको भी दो
बाद उसके एक नजर
आसमान पर डालो
आते जाते रंगो को निहारो
पक्षियों को हवाओं के साथ
उडते आकाश में गोते लगाते
एक उडान आप भी भर लो
थोडा सा आसमां अपना कर लो
आज कंहा कंहा जाना है
तय कर लो।

आज उमराव कोठे से उतर रही है !

कलम से____

आज उमराव कोठे से उतर रही है
घर अपने वो नये जा रही है
बैलों की गड़िया नीचे आ गई है
मलिकिन, चलो अब देर हो रही है
आवाज गाड़ीवान की नीचे से आ रही है
आइने की धूल हटा उमराव
आखिरी बार खुद को आइने में देखती है
पोटली सामान की हाथ उठा
जीने की ओर बढ़ती है
जीने से नीचे जाने तक का सफर लम्बा है
तय तो आखिर करना है
न जाने मुआ वो कौनसा मनहूस दिन था
जिस हादसे ने मुझे यहाँ पहुँचा दिया था
याद कर उस मनहूस दिन को मेरा दिल आज भी जलता है
जीने से ऊपर क्या गई
लौट नीचे कभी न आई
आज मैं, उमराव, इस नाम की लेकर नीचे उतरूँगी
दुबारा कभी इस जीने पर
कोई और बदनसीब न लाई जाए
खुदा से दुआ मैं कँरूगी।

कितने हसीन ख्वाब यहां बन गए
कितने बन कर टूट गए
सबकी याद दिल में बसा
जीने से नीचे जा रही हूँ
एक एक सीढ़ी उतर रही हूँ
पैर कहीं मेरा फिसल न जाए
ख्याल इसका रख रही हूँ
इस बार फिसल अगर गई
दुबारा उठ न सकूंगी कभी
टूटी हुई हड्डियां लेकर
मैं गावं अपने कैसे लौटूंगी
जिन्दगी कैसे आगे की जिऊँगी
आखिरी सीढ़ी तक
जिन्दगी आखिर आ ही गई
मेरी जिन्दगी एक पायदान औ' चढ़ गई
चलो, गाड़ीवान, गड़िया चलाओ तुम
सफर बहुत लम्बा है
रास्ता टेढ़ा मेढ़ा और काटों भरा है
चलो जल्दी चलो
इस गली मुहल्ले में
अब मेरा दम घुटता है।

एक नये आसमां की तलाश में
चलो गाड़ीवान जल्दी चलो
मुझे किसी से मिलना है
वक्त पर पहुँची अगर नहीं
फिर मैं मिल न सकूँगी कभी।

हाँ, मलिकिन, चलो बस यहाँ से चली चलो।

//surendrapal singh//
08 06 2014

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Tuesday, August 5, 2014

बेनकाब इनको कर दो

कलम से____

बेनकाब इनको कर दो
रह न जाये कुछ पास
नंगा इन्हें इतना कर दो
आखँ शर्म से झुकी रहे।

गुनाह किया है कुछ ऐसा
घिन आती है बताते भी
खुद तो बेआबरू हुए हैं
दूसरे की भी निगाह नीची है।

इनको माफ कर दें
हैैं इस काबिल नहीं
रहेंगे कैसे सभ्य समाज में
जड खोद म्ठ्ठा उसमें भर दो
पाप इन्होंने किए ही ऐसे हैैं
इनकी नस्ल भी पैदा न हो
कुछ ऐसा कर भर दो।

गुनाह इतने हैं अधिक
कितने गिनाओगे उंगलियाँ
पर भी समा न पाएगें
फिर भी क्या एक मौका
सुधरने का समझने का
देने की इन्हें सोच पाओगे।

(On juvenile crimes involvement like rape and murders)


//surendrapalsingh//
08 07 2014

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ख़त लगभग खत्म हो गए

कलम से____

ख़त लगभग खत्म हो गए
अरमान मेरे लुट गए
नाज़ करते थे कभी जिन पर
वह गुजरे जमाने की बात हो गये।

चंद इन्सानों के बीच
रह शायद जाएगा
वरना वजूद ख़त का
खत्म हो जाएगा।

प्यार करने वाले
आँसू बहाएंगे
कहना चाहेगें कुछ
कुछ और ही समझे जाएगें।

प्यार की जुबां
बदल जाएगी
सारी बात
एक छोटे से मोबाइल के
एसएमएस में समा जाएगी।

कविता, कविता से
रूठ जाएगी
भावना मिट जाएगी
कल्पना भी खो जाएगी
प्यार की परिभाषा बदल जाएगी
हम सब आज जो भी कहते हैं
कुछ ऐसा न रहेगा, कुछ वैसा न होगा
दिल जो धडकता है, वो न धडकेगा
इन्सान हौले हौले पत्थर हो रहा है
पत्थर का हो जाएगा
आँसू बहाने के काबिल न रह जाएगा।

//surendrapal singh//
08 06 2014

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कल ही की बात है जिक्र उनका महफिल में हुआ था

कलम से ___

कल ही की बात है जिक्र उनका महफिल में हुआ था
खिलती हुई कली हैं यूँ किसी ने बडे अदब से कहा था।

कली से फूल खुदारा वो एक दिन बनेगें
कत्ल निगाहों से न जाने कितनों का करेगें।

चढती जवानी के आलम की क्या बात है
चर्चा ए आम है शहर में हुस्न लाजबाब है।

दिन हरेक के पलटते हैं मेरा भी एक होगा
उस दिन का इंतजार हम तहेदिल से करेगें।

खुदा मेहरबान रहे वो हमारे बन के रहेगें
खुली बाहों में आने के उनकी राह हम तकेगें।

//surendrapal singh//

08 06 2014

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Saturday, August 2, 2014

क्यों ले आए हो मुझे मुर्दों के शहर में

कलम से____

क्यों ले आए हो मुझे मुर्दों के शहर में
इनसां नजर मुझे अभी तक आए नहीं हैं।

कैसे तबीयत लगेगी किसी की यहाँ
दर्द बांटने को कोई आता नहीं यहाँ।

रौशनी भी बनी है परेशानी की सबब यहाँ
अधेंरे अधिक हैं बहुत रोशनी तलाशते यहाँ।

किरण आशा की बस एक नजर आती है
पास आकर पूछता है कोई आप कैसे हैं यहाँ।

//surendrapalsingh//
08 02 2014

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बडे दरख्त तले गुजारी थी जिन्दगी

कलम से____

बडे दरख्त तले गुजारी थी जिन्दगी
करते थे दिन रात हम उसकी बन्दगी।

सिर उठाके कभी कोशिश भी करी
समझा दिया लंबी पडी है जिन्दंगी।

चल न सको जब तलक अपने बल बूते
अच्छा यही है रहो मातहत किसी के।

सिर कुचलने को दुश्मन तैयार बैठे हैं
रहना पडेगा तुम्हें संभलके उनसे बचके।

जमाने में मिलेंगे इन्सान हर तरह के
सिला देगें कुछ चैन पाएगें बदनाम करके।

मेरे प्यारे बने तुम रहना आचंल की छांव तले
माँ साथ है तेरे कुछ न होगा कोई चाहे कुछ भी करले।


//surendrapal singh//
08 03 2014

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