Friday, July 25, 2014

कलम से _ _ _ _

मेरी ननिहाल
एक तरफ भडभूजे का घर
दूजी तरफ कुम्हार का घर ।

छुट्टियों मे खत्ती से
चने-मकई से भरते डलिया
भाग लेते भडभूजे के घर की ओर
मौज कितनी आती जब खाते
सब बैठ मुडगेरी पर।

घेर आते जाते
दिख जाता तेज रफ्तार घूमता चाक
बनते थे जिस पर दिया 
रखने को ताक
गीली मिट्टी से कुम्हार करता जाता बात
देखते देखते बन जाती अच्छी सी सौगात ।

दोनो के पास मिट्टी की थी भट्टी
पहला देता खाने पीने का सामान
दूजा पकाता उन बतॆन को जो गीली मांटी से बनते थे
पकाओ न दोनों को तब तक कच्चे रहते थे ।

दोनों ही मिल कर पेट पूजा कराते थे
इससे ज्यादा और क्या कहै

//surendrapalsingh//

07262014

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