Tuesday, July 22, 2014

कलम से _ _ _ _

कहीं हो रहा प्रकोप बाढ का
कहीं पडा है शोक अकाल का
किसान देख रहा आकाश पर
धरती फट गई है तिरक कर।

चकोर मैना तोता कागा सभी
को लगता बारिश होगी अभी
लाल लाल राम गुडिया बरसेगी
सावन की जब झडी लगेगी ।

धान पर लगी आस है
मिट्टी मिल रही शान है
होगा क्या नहीं आता समझ
मिट जायेंगे अबके बरस।

सरकार अभी नई नई है
पता उसे कुछ नहीं है
चीन जापान अमरीका
बातें करता अफ्रीका
नकली वारिश हो कैसे
मिल बैठ कर करें कैसे
विचार इस ओर नहीं होगा
समस्या का निदान कैसे होगा
किसान परेशान है, परेशान ही रहेगा।



//surendrapal singh//

07232014

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and

http://spsinghamaur.blogspot.in/

1 comment:

  1. There's a suggestion to look for artificial rain in deficit areas.

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