Sunday, July 20, 2014

कलम से _ _ _ _

धधक रहा है भीतर एक ज्वालामुखी
फूट बहने को
कुछ करने को 
बरदाश्त नहीं होतीं हैं
हर रोज वही खबरें 
आज अपने घर में ही कोई लुट गया है
अस्मिता से खेल रोज हो रहा है
कौन हैं
कौन देश है आए हैं
अपने लोग ही दुशमन बन छाए हैं
व्यवस्था सब फेल हो रही
ऐसा प्रतीत होता है
सरकार एक नहीं अनेक आईं गईं
पर यहां न कुछ होता है
न्याय किस से मांगें
न्यायालय जब सोता है।

उठो चलो
जन सैलाब यह कहता है
उखाड बैंक दो
उस व्यवस्था को
जिस से भला किसी का नहीं होता है
जनता के प्रतिनिधि बन
कैसे यह होते हैं
जब हम जगते हैं
अच्छे अच्छे डरते हैं।

लाओ नई व्यवस्था
जिसको पाकर हम सब सुखी रहेगें
दुख कष्ट और न सहेंगे
जन भावनाओं का आदर सत्कार होगा
भारत देश तब महान बनेगा।

//surendrapal singh//

07212014

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