कलम से _ _ _ _
धधक रहा है भीतर बन ज्वालामुखी एक,
फूट कर बहने के लिए,
रोकता हूँ तबाही न मचा दे,
धीरे धीरे बहेगा तो किसी के काम आएगा,
अन्यथा सम्पूर्ण ब्रम्हांड डूब जाएगा।
मेरे भीतर की है यही कहानी,
कुछ नई सी है कुछ है पुरानी!
//surendrapal singh//
07212014
http://1945spsingh.blogspot.in/2014/07/blog-post.html
and
http://spsinghamaur.blogspot.in/
धधक रहा है भीतर बन ज्वालामुखी एक,
फूट कर बहने के लिए,
रोकता हूँ तबाही न मचा दे,
धीरे धीरे बहेगा तो किसी के काम आएगा,
अन्यथा सम्पूर्ण ब्रम्हांड डूब जाएगा।
मेरे भीतर की है यही कहानी,
कुछ नई सी है कुछ है पुरानी!
//surendrapal singh//
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