कलम से _ _ _ _
सूरत को तेरी जब से,
दिल में उतारा है,
हमने आइने से,
मुखातिब होने छोड दिया है,
तेरी आँखों में,
हमें चेहरा अपना नजर आने लगा है।
तू सामने निगाहों के जब तलक रहता है,
लगता है कि मेरा मालिक मेरे साथ रहता है।
करना है तो, मेरे मालिक कुछ ऐसा कर,
और कोई हो न हो,
खुदा गवाह रहे, हमारी इस मुलाकात का ।
//surendrapal singh//
07212014
http://1945spsingh.blogspot.in/2014/07/blog-post.html
and
http://spsinghamaur.blogspot.in/
सूरत को तेरी जब से,
दिल में उतारा है,
हमने आइने से,
मुखातिब होने छोड दिया है,
तेरी आँखों में,
हमें चेहरा अपना नजर आने लगा है।
तू सामने निगाहों के जब तलक रहता है,
लगता है कि मेरा मालिक मेरे साथ रहता है।
करना है तो, मेरे मालिक कुछ ऐसा कर,
और कोई हो न हो,
खुदा गवाह रहे, हमारी इस मुलाकात का ।
//surendrapal singh//
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सुन्दर रचना।
ReplyDeleteबहुत बहुत ह्रदय से आभार।
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