Sunday, July 20, 2014

कलम से _ _ _ _

"मेघ आमंत्रण"

आज भी तुम न आए
नैन बिछाए बैठा मैं रहा
और न आए तुम।

मिलन की पहली रात का
बारिश की पहली बूंद का
रहता है बहुत इंतजार 
आज भी न आए तुम।

करते क्यों हो 
तुम बार बार निराश।

धनधोर घटा छाई 
आस बहुत जगाई 
बरसोगे अबके जोरदार
बिजली आसमान में कडकी
हवाओं के झोकों के साथ बह क्या गए
लौट फिर न आए
आज भी न आए तुम।

आना खूब बरसना
कोई न दे उलाहना
अपने हो कर बरसना
शातं न हो जाए धरा
तब तक बरसना।

पेड पोधों को
सूखी दूब को
पशुओं को
पक्षियों को
मोर नचने न लगे
कुहू कुहू का न सुनाई पडे राग
तब तक बरसना।

उमस भरी शाम को
मेरा महबूब भी
आने से कर देता है इनकार
मौसम सुहावना होगा 
तब आएगा मेरा यार
मौसम रंगीन न हो जाय
हवा में मासूमियत न हो जाय
तब तक बरसना
महबूब मिलन को होजाए त्यैयार
इतना तो कम से कम करना।

अबके जो आना
तो तबीयत से बरसना।

//surendrapal singh//

07192014

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