Sunday, July 20, 2014

कलम से _ _ _ _
अचानक एक दिन,
डोर बैल बजी,
दरवाजे पर,
ऊनको पाया,
जो कभी हमें
प्यार करती बहुत थीं।

मैं भी उन्हें
प्यार करता बेहद था।

कुछ ऐसा हो गया,
वह इधर गये,
मैं उधर चला गया।

फिर न मिले,
हालात ही कुछ ऐसे बने,
वह मुबंई,
और मैं दिल्ली आ गया।

अचानक जब आज,
उनको देखा,
तो दबा प्यार जुबां पर आ गया।

अंदर तो आओ,
बैठो यहां, कुछ पास मेरे,
दिल ने कहा था मेरे,
अहसास हो आया,
अगले ही पल,
ने वो अब हैं मेरे, 
न मैं अब रहा उनका।

सुनो, कहके आवाज दी,
आया है देखो, कौन मिलने तुमसे,
पत्नी ने गले से उन्हें लगाया,
बहुत ही अदब से पास बिठाया,
लगा जैसे मुलाकात हुई है,
गुजरे अरसे के बाद।

कहा मेरी धर्म पत्नी ने उनसे,
नहीं थे मिले कभी हम,
फिर भी जुदा न थे हम,
हर वक्त रहते थे, पास हम तुम।

न जाने और कया क्या न हुआ,
उन दोनों के दरमियाँ,
अब घट जो गई हैं दूरियाँ,
आखें दोनों की हंसती कभी हैं,
कभी रो कर कहती बहुत हैं,
कुछ अपनी बीती, 
कुछ आखों ही आखों, जो हैं रीती।

ऐसे हुई मुलाकात,
डरता रहता था जिससे मैं हमेशा,
बना रहता था एक अंदेशा,
क्या होगा जब होंगे,
आमने सामने वह दो इनसां,
जो प्यार करते मुझे बेइन्तह!

//surendrapal singh//

07192014

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