कलम से _ _ _ _
उमस भरी गरमी से पीछा अब छूटेगा
वन संपदा को जीवन दान मिलेगा
मनमीत बन आ जाओ रंग खूब जमेगा
मेघ तुम्हारे स्वागत आशा दीप जलेगा।
मरु में म्रगत्ष्णा के पीछे भाग रहा हूँ
एक बूँद जल की पीने को तरस रहा हूँ
घिर कर फिर तुम न जाने कहाँ चले जाते हो
आखं मिचौली सी खेल गायब हो जाते हो।
बरसो अब घनघोर घटा सी जीवन वन में
हरियाली छा जाऐ सूख रहे इस जंगल में
मोर मोरनी दोनों नाचने को आतुर होवे हैं
कोयल के सुर सुनने को दिल बेबस अब है।
उमस भरी गरमी से पीछा अब छूटेगा
वन संपदा को जीवन दान मिलेगा
मनमीत बन आ जाओ रंग खूब जमेगा
मेघ तुम्हारे स्वागत आशा दीप जलेगा।
मरु में म्रगत्ष्णा के पीछे भाग रहा हूँ
एक बूँद जल की पीने को तरस रहा हूँ
घिर कर फिर तुम न जाने कहाँ चले जाते हो
आखं मिचौली सी खेल गायब हो जाते हो।
बरसो अब घनघोर घटा सी जीवन वन में
हरियाली छा जाऐ सूख रहे इस जंगल में
मोर मोरनी दोनों नाचने को आतुर होवे हैं
कोयल के सुर सुनने को दिल बेबस अब है।
//surendrapal singh//
07192014
http://1945spsingh.blogspot.in/2014/07/blog-post.html
and
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