कलम से _ _ _ _
बरदाश्त की हद के बाहर हो जाते है हालात,
तब नजरें नहीं मिलाते हैं,
दिल लगाने की बात कोंन करे,
वही लोग आखें तक चुराते हैं।
सूरते हालात लगता नहीं कि बदलेंगे,
न हम ने,
न ही उन्होंने अंजाम समझा है,
न खुद को जाना है न उनको जाना है,
जब उनको समझेंगे तब खुद को जानेंगे,
कुछ न कहेंगे
और
न अब किसी की सुनेंगे।
//surendrapal singh//
07192014
http://1945spsingh.blogspot.in/2014/07/blog-post.html
and
http://spsinghamaur.blogspot.in/
बरदाश्त की हद के बाहर हो जाते है हालात,
तब नजरें नहीं मिलाते हैं,
दिल लगाने की बात कोंन करे,
वही लोग आखें तक चुराते हैं।
सूरते हालात लगता नहीं कि बदलेंगे,
न हम ने,
न ही उन्होंने अंजाम समझा है,
न खुद को जाना है न उनको जाना है,
जब उनको समझेंगे तब खुद को जानेंगे,
कुछ न कहेंगे
और
न अब किसी की सुनेंगे।
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