कलम से _ _ _ _
घनघोर बारिश हो तो यह मन की आग बुझे,
अग्नि बरसों से जो धधक रही है कुछ बुझे।
रिश्ते नाजुक हैं बडे,
कोई बस यूँ ही बिगडे,
कोई यूं ही अपने पर हंसे,
हम इनके बीच बेकार फंसे।
तुम रहना बस मेरे,
वादा जो किया था,
प्यार जब हुआ था,
निभाना बस उसे।
सतरंगी इन्द्रधनुष बन नभ पर तुम छा जाना,
उमड घुमड करते बादलों से संदेश भेज देना,
आना फिर आना फिर जाना खूब बरस जाना,
उमस भीतर की सदा को बुझा कर जाना।
घनघोर बारिश हो तो यह मन की आग बुझे,
अग्नि बरसों से जो धधक रही है कुछ बुझे।
रिश्ते नाजुक हैं बडे,
कोई बस यूँ ही बिगडे,
कोई यूं ही अपने पर हंसे,
हम इनके बीच बेकार फंसे।
तुम रहना बस मेरे,
वादा जो किया था,
प्यार जब हुआ था,
निभाना बस उसे।
सतरंगी इन्द्रधनुष बन नभ पर तुम छा जाना,
उमड घुमड करते बादलों से संदेश भेज देना,
आना फिर आना फिर जाना खूब बरस जाना,
उमस भीतर की सदा को बुझा कर जाना।
//surendrapal singh//
07192014
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