Friday, July 25, 2014

खुद ही हम अपने लिऐ नये आयाम बनाते है, सीमाएँ बनाते है,

कलम से _ _ _ _

खुद ही हम अपने लिऐ नये आयाम बनाते है,
सीमाएँ बनाते है,
कहाँ जाना है,
कितनी दूर जाना है,
कैसे जाना है,
वगैरह-वगैरह ।

आज जो किया है,
उससे अच्छा करना है,
कल जो किया था,
पुराना पड गया है,
बस आगे-आगे ही बढ़ना है,
पीछे मुड़ के नही देखना है।

यही जज्बा है,
कि नये आयाम बनाना है।

 //surendrapalsingh//

07252014

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