कलम से _ _ _ _
वैस देखा जाए तो इनसां ता उम्र बच्चा रहता है,
हालात ही कुछ ऐसे होते हैं वह बदला बदला लगता है।
माँ को किलकारियाँ अच्छी लगतीं है जब वह छोटा होता है
सकूल जाता है जब मिठाइयां मोहल्ले भर में बटतीं हैं।
थोडा जब और बडा वह होता है निगाहें उस पर बनी रहतीं हैं
आसपास की सुन्दरियां भी उसको तडा करतीं हैं।
बच नहीं सकता है वह इश्क मुश्क के चक्कर से
फंस ही जाता है आखिर किसी न किसी हसींना से।
शादी हो जाय तो मुबारक न हो तो उसे निकालो चक्कर से
ढूंढ़ो एक अदद लडकी शादी के बन्धन में बंधने के लिए ।
खुशियों में डूब जाते हैं माता औ' पिता दोनों ही
आगई जो गई है घर में एक नई नवेली दुलहन सी।
धीरे धीरे जिदंगी अपनी राह चलती रहती है
दो से तीन फिर चार की गिनती बढ़ती रहती है।
मुश्किलातों के बीच कभी हँसते तो कभी रोते जिंदगी चलती है
हौले हौले न चाहकर भी बंटवारे के द्वार जा खडी होती है।
अब कोई क्या करे क्या न करे समझ नहीं आता
अच्छों अच्छों की बोलती बंद होती जाती है।
हालात नाजुक होते जाते हैं काबू के बाहर जब हो जाते हैं
टिकट हरिद्वार की कटा एक दिन माँ बाप को ट्रेन पर बिठा देता है।
यहां तक साथ निभा कोई बचपन में लौट जाता है
कोई अपने जीवन की आखिरी सांस गिनता रहता है।
//surendrapal singh//
07 30 2014
http://1945spsingh.blogspot.in/
and
http://spsinghamaur.blogspot.in/
वैस देखा जाए तो इनसां ता उम्र बच्चा रहता है,
हालात ही कुछ ऐसे होते हैं वह बदला बदला लगता है।
माँ को किलकारियाँ अच्छी लगतीं है जब वह छोटा होता है
सकूल जाता है जब मिठाइयां मोहल्ले भर में बटतीं हैं।
थोडा जब और बडा वह होता है निगाहें उस पर बनी रहतीं हैं
आसपास की सुन्दरियां भी उसको तडा करतीं हैं।
बच नहीं सकता है वह इश्क मुश्क के चक्कर से
फंस ही जाता है आखिर किसी न किसी हसींना से।
शादी हो जाय तो मुबारक न हो तो उसे निकालो चक्कर से
ढूंढ़ो एक अदद लडकी शादी के बन्धन में बंधने के लिए ।
खुशियों में डूब जाते हैं माता औ' पिता दोनों ही
आगई जो गई है घर में एक नई नवेली दुलहन सी।
धीरे धीरे जिदंगी अपनी राह चलती रहती है
दो से तीन फिर चार की गिनती बढ़ती रहती है।
मुश्किलातों के बीच कभी हँसते तो कभी रोते जिंदगी चलती है
हौले हौले न चाहकर भी बंटवारे के द्वार जा खडी होती है।
अब कोई क्या करे क्या न करे समझ नहीं आता
अच्छों अच्छों की बोलती बंद होती जाती है।
हालात नाजुक होते जाते हैं काबू के बाहर जब हो जाते हैं
टिकट हरिद्वार की कटा एक दिन माँ बाप को ट्रेन पर बिठा देता है।
यहां तक साथ निभा कोई बचपन में लौट जाता है
कोई अपने जीवन की आखिरी सांस गिनता रहता है।
//surendrapal singh//
07 30 2014
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