Wednesday, July 23, 2014

जीवन परिभाषित न करो!

कलम से _ _ _ _

जीवन परिभाषित न करो,
प्रयास ऐसा न कोई करो,
अनंत को न बाँध पाओगे,
क्षितिज पार सदा पाओगे।

पक्षी बन उड जाऊँगा,
दूर बहुत चला जाऊँगा,
झूठे मन न बहलाऊँगा,
कदापि पास न आऊँगा ।

चलो आज कुछ नया करें,
मिलजुल कर साथ चलें,
आगे बढ़ने की बात करें,
आयाम नये निर्माण करें।

अधिक न करें इतना तो करें,
दूर तक मिल कर साथ चलें,
जिऐ या मरे जो हो साथ करें,
हाथ एकदूजे हाथ ले साथ चलें ।


//surendrapalsingh//

07242014

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