कलम से ____
मरु के लोग निराले है,
बियाबान रेत के मतवाले हैं,
पेड ठूंठ से दिखते हैं,
परछाईं अपनी देखा कर हंसते है ।
मरु के लोग निराले हैं।
रंग अजीब इनके प्यारे हैं,
लाल काले पीले रंगीले हैं,
मूंछों से भरा है चेहरा,
पगडी सिर चढ बोलती है।
मरु के लोग न्यारे हैं।
जूती है कुछ बडी बडी
छप्पर की है झोपडी
गरम रहे जितना भी
ठंडी रहे है खोपडी।
मरु के लोग प्यारे हैं।
मरु के लोग निराले है,
बियाबान रेत के मतवाले हैं,
पेड ठूंठ से दिखते हैं,
परछाईं अपनी देखा कर हंसते है ।
मरु के लोग निराले हैं।
रंग अजीब इनके प्यारे हैं,
लाल काले पीले रंगीले हैं,
मूंछों से भरा है चेहरा,
पगडी सिर चढ बोलती है।
मरु के लोग न्यारे हैं।
जूती है कुछ बडी बडी
छप्पर की है झोपडी
गरम रहे जितना भी
ठंडी रहे है खोपडी।
मरु के लोग प्यारे हैं।
No comments:
Post a Comment