Friday, July 25, 2014

मुनिया आज बेइतंहा खुश लग रहीहै ।

कलम से _ _ _ _
छोटे छोटे शहर और गाँव मे,
घरों के बीच दीवारें मिली होती है,
छते भी मिली होतीं है,
गरमी के दिनों मे,
छत पर पानी छिडकने के बाद
बिस्तर और मसहरी लग जाती है,
कुछेक को जमीन पर ही मजा आता है,
खाना वाना खाकर सब ऊपरी हिस्से मे आ जाते है,
देर रात कहानी किससे चला करते है,
चाँद भी चढ़ने लगा और चाँदनी भी पैर पसारने लगी है,
मुनिया अपने उनसे मिलने और कहने का इंतजार कर रही है,
जब सो जाते है तो वो उनके पहलू जाती है,
मुनियि की खातिर चाँद बदली मे चला जाता है।
सुबह पौ फटते ही मुर्ग की बाँग से चिड़ियो की चहचहाट से रोजमर्रा की हरकते शुरू हो जाती है।

मुनिया आज बेइतंहा खुश लग रहीहै ।

//surendrapalsingh//

07252014

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