Friday, July 25, 2014

बाग मे आज प्रातः, पाँव के नीचे कुछ आ गया, आँख जब गयी, दिल मेरा ददॆ से मचल गया ।

कलम से _ _ _ _

बाग मे आज प्रातः,
पाँव के नीचे कुछ आ गया,
आँख जब गयी,
दिल मेरा ददॆ से मचल गया ।
जो लगते थे अच्छे,
कल शाम तक जो मन भाते थे,
वो पाँव तले आज रौदे जाते थे,
जो चढ़ते थे मंदिर मे,
भगवान के शीष,
आज इन हालात मे पाऐ जाते थे।

कुसूर सब उनका न था,
जीवन से छुटकारा जो मिल गया था ।

मन बहलाते,
चोटी मे गजरा बन जो सजते,
नयी नवेली दुल्हन के,
स्वागत की माला मे गुथँते,
मन किसी का हर लेते,
गीतों का श्रँगार जो होते,
और न जाने क्या क्या करते,
फिर भी बस यूँ बरबस न होते ।

वो भी क्या करते,
जब साँसौ ने,
साथ जो छोड़ दिया था।


//surendrapalsingh//

07252014

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