कलम से _ _ _ _
जमाने मे तो
यह होता है,
ऐक आता है ऐक जाता है,
जमाने मे यह होता है।
पतंग हवा के रुख पर जब उडती है,
पतंगबाज का दिल खिल उठता है,
पतंग जब कटती ललुआ कंयौ रोता है।
निगाह उठती है तो दिल किसी से लगता है,
निगाह नीची हो जाऐ शमॆ से सिर झुकता है,
तलवार ऊठे तो दुश्मन भाग जाता है,
देशभक्ति का जजबा जब आऐ तो खून उबलने लगता है।
जमाने मे ऐसा ही कुछ
कभी वैसा भी होता है।
ऐक आता है ऐक जाता है,
जमाने मे यह होता है।
पतंग हवा के रुख पर जब उडती है,
पतंगबाज का दिल खिल उठता है,
पतंग जब कटती ललुआ कंयौ रोता है।
निगाह उठती है तो दिल किसी से लगता है,
निगाह नीची हो जाऐ शमॆ से सिर झुकता है,
तलवार ऊठे तो दुश्मन भाग जाता है,
देशभक्ति का जजबा जब आऐ तो खून उबलने लगता है।
जमाने मे ऐसा ही कुछ
कभी वैसा भी होता है।
//surendrapalsingh//
07252014
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