कलम से _ _ _ _
नीम बौराय रहा
है,
अमलताश लाल-लाल,
फुलवा से लदायरहा है,
बैसाख जाय रहा है,
जेठ आय रहा है ।
गरमी उफान पर है,
गरीब लहू लुहान है,
महँगाई की मार है,
पानी की गुहार है।
बैसाख जाय रहा है,
जेठ आय रहा है ।
दुपरिया मे अधंड,
भूत सा बबंडर,
मन के अंदर,
खूब डराय रहा है ।
बैसाख जाय रहा है,
जेठ आय रहा है
छत खूब गरिमाय रही है,
बैरी अटरिया बुलाय रहा है,
छालन से पैर जलाय रहा है,
जालिम पिया सताय रहा है,
पसीने से बदन नहाय रहा है,
मजा इस पर भी आय रहा है,
जेठ जो है, सो सताय रहा है।
बैसाख चला गया है,
जेठ का महीना आय गया है ।
फुलवा से लदायरहा है,
बैसाख जाय रहा है,
जेठ आय रहा है ।
गरमी उफान पर है,
गरीब लहू लुहान है,
महँगाई की मार है,
पानी की गुहार है।
बैसाख जाय रहा है,
जेठ आय रहा है ।
दुपरिया मे अधंड,
भूत सा बबंडर,
मन के अंदर,
खूब डराय रहा है ।
बैसाख जाय रहा है,
जेठ आय रहा है
छत खूब गरिमाय रही है,
बैरी अटरिया बुलाय रहा है,
छालन से पैर जलाय रहा है,
जालिम पिया सताय रहा है,
पसीने से बदन नहाय रहा है,
मजा इस पर भी आय रहा है,
जेठ जो है, सो सताय रहा है।
बैसाख चला गया है,
जेठ का महीना आय गया है ।
//surendrapalsingh//
07252014
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