कलम से _ _ _ _
कुहू मेरे पास खडी देख रही थी,
मैं शेव बनाने जा रहा था,
मैंनें दाढी पर क्रीम जब लगाई,
झट वह वोली दादा ये वाली नहीं वो वाली लगाओ,
इशारा था, उसका जिलेट के gel की ओर,
मैने यह कह छुट्टी पाई,
मुझे क्रीम ही अच्छी लगती है,
बच्ची है नहीं मानती,
फिर कहना था,
उसका कि gel का advertisement वह भी देखती है,
उसकी एक बूंद काफी होती है।
कुहू की बात सुन इतना तो समझ मैं भी गया,
TV के add का असर घर घर हो गया।
मुझे अपना बचपन भी याद हो आया,
बाबूजी भी शेव घर पर ही करते थे,
मैं भी उन्हें curiosity भरी निगाहों से देखता था,
उस जमाने में इरेश्मिक ब्रांड की गोल वट्टी आती थी,
वही शेविंग क्रीम का काम करती थी,
वट्टी से क्रीम हुई, हुई क्रीम से gel,
शेव करते सभी घर पर बडे बूढे और नौजवान,
नाइयों का नहीं अब कोई काम।
जमाना कितना बदल गया है,
दादाजी के समय में रामू नाऊ घर आया करते थे,
वही दादाजी की शेव बनाया करते, आसपास के किस्से भी खूब चुस्की ले सुनाया करते थे।
सभी नाऊ परिवार गांव से पलायन कर गए हैं,
काम उनके लिए गांव में जो रह नहीं गया है,
पहले की शादियों में इनका रोल अहम होता था,
अब तो शादी भी तय लोग स्वयं कर लेते हैं,
पूछं उनकी खत्म हो गई, मूंछ भी कट गई,
गावं में क्या करते शहर आगए हैं,
हेयर कट सैलून खोल जीवन चला रहे हैं।
परिवर्तन की चली बयार है
सबको अब यही स्वीकार है।
//surendrapal singh//
07212014
http://1945spsingh.blogspot.in/2014/07/blog-post.html
and
http://spsinghamaur.blogspot.in/
कुहू मेरे पास खडी देख रही थी,
मैं शेव बनाने जा रहा था,
मैंनें दाढी पर क्रीम जब लगाई,
झट वह वोली दादा ये वाली नहीं वो वाली लगाओ,
इशारा था, उसका जिलेट के gel की ओर,
मैने यह कह छुट्टी पाई,
मुझे क्रीम ही अच्छी लगती है,
बच्ची है नहीं मानती,
फिर कहना था,
उसका कि gel का advertisement वह भी देखती है,
उसकी एक बूंद काफी होती है।
कुहू की बात सुन इतना तो समझ मैं भी गया,
TV के add का असर घर घर हो गया।
मुझे अपना बचपन भी याद हो आया,
बाबूजी भी शेव घर पर ही करते थे,
मैं भी उन्हें curiosity भरी निगाहों से देखता था,
उस जमाने में इरेश्मिक ब्रांड की गोल वट्टी आती थी,
वही शेविंग क्रीम का काम करती थी,
वट्टी से क्रीम हुई, हुई क्रीम से gel,
शेव करते सभी घर पर बडे बूढे और नौजवान,
नाइयों का नहीं अब कोई काम।
जमाना कितना बदल गया है,
दादाजी के समय में रामू नाऊ घर आया करते थे,
वही दादाजी की शेव बनाया करते, आसपास के किस्से भी खूब चुस्की ले सुनाया करते थे।
सभी नाऊ परिवार गांव से पलायन कर गए हैं,
काम उनके लिए गांव में जो रह नहीं गया है,
पहले की शादियों में इनका रोल अहम होता था,
अब तो शादी भी तय लोग स्वयं कर लेते हैं,
पूछं उनकी खत्म हो गई, मूंछ भी कट गई,
गावं में क्या करते शहर आगए हैं,
हेयर कट सैलून खोल जीवन चला रहे हैं।
परिवर्तन की चली बयार है
सबको अब यही स्वीकार है।
//surendrapal singh//
07212014
http://1945spsingh.blogspot.in/2014/07/blog-post.html
and
http://spsinghamaur.blogspot.in/
No comments:
Post a Comment